रिश्ता
उफ़्फ़, ये दर्द और रात का रिश्ता
समझ ना आता मुझे यह रिश्ता ।
साँझ ढले हौले - हौले है बढ़ता
और धीरे - धीरे परवान वो चढ़ता
क्यों है इन दोनों में गहरा नाता
जो मुझे समझ ना आता
रैन होती जब शबाब पर
तब ही दर्द होता उफान पर
क्यों , इन दोनों को मिलना
सदा तन्हाई में
पीड़ा देता है
दोनों का तन्हाई में मिलना
किन्तु इनको तो आनंद आता
तन्हाई में हौले - हौले मिलना
क्या है इन दोनों में रिश्ता
जो समझ ना आता।
उफ्फ, ये दर्द और रात का रिश्ता ।
दर्द भरी दास्ताँ।
ReplyDelete🙏
Deleteलगता है कि दर्द गहरा है
ReplyDeleteहाँ, गहरा तो है
DeleteNice👌
ReplyDelete🙏
DeleteVery 👍
ReplyDeleteVery Nice 👍
Delete🙏
Delete