कर्मकांड

    जन्म हुआ है तो मृत्यु निश्चित है । यह कहना गलत ना होगा कि गर्भ में ही मृत्यु का दिन निश्चित हो जाता है । मृत्यु पर लिखना अच्छा तो नहीं लग रहा लेकिन क्या करुॅं , दिलो-दिमाग में बहुत दिनों से उथल-पुथल चल रही । 

      किसी अपने के जाने के उपरांत सब यह बोल कर सांत्वना देते हैं कि ," सब ऊपर वाले के हाथ में है ।" सच भी है कि सब ऊपर वाले के हाथ में है और हम केवल अपना कर्म कर सकते हैं । किसी की असमय मृत्यु निश्चित ही अत्यंत कष्टकारी होती है ।उनका जाना भी कष्टकारी होता है जो‌ आयु पूर्ण कर जाते हैं और वो अगर माता-पिता हों‌ तब कष्ट थोड़ा ज्यादा होता है । किंतु पापा के जाने के बाद यह लगा कि मृत्यु के बाद के कर्मकांड उससे ज्यादा कष्टकारी होते हैं । क्योंकि इससे पहले मैंने ये सब देखा नहीं था । (जो मैंने देखा और सुना है उसी के आधार पर लिख रही। वैसे मैं बहुत ज्यादा जानती नहीं । )

     लोग कहते हैं कि तेरहवीं वगैरह करने का प्रावधान इसलिए किया गया कि लोग व्यस्तता में अपना दुःख भूल जाएं और मृतक की आत्मा को शांति मिले । सोचिए इसी में किसी की असमय मृत्यु हो तो क्या तेरहवीं का भोज अच्छा लगता है ? उसके परिजन कैसे यह सब कर्मकांड करते होंगे ? जरा सोचकर देखिए ।

          किसी स्त्री का हमसफर जब साथ छोड़कर चला जाता है तब उस स्त्री के कष्ट को समझना दुष्कर है और ऊपर फालतू के रीति-रिवाज । जो सिंदूर चादर से ढककर लगाया जाता है उसी को सबके सामने पोंछा जाता है । यह उचित है ? और भी इसी प्रकार के कर्मकांड । इसका उस स्त्री पर या स्त्री के बच्चों पर या उस स्त्री के माता-पिता के दिलो-दिमाग पर कितना गहरा असर पड़ता होगा , कुछ स्त्रियां तो अवसाद की शिकार हो जाती होंगी । 

            वास्तव में मुझे लगता है कि स्त्रियों के लिए यह सब नियम उनको समाज से अलग - थलग करने और उनको दबाने के लिए किए गए थे । लेकिन आज के समय में मुझे इसकी आवश्यकता नहीं जान पड़ती । 

          अब तेरहवीं । तो इसके लिए मैं यही कहूॅंगी कि जिसकी जैसी इच्छा वैसा वो करे लेकिन कुछ भी करने से पहले यह अवश्य सोचें कि उस व्यक्ति को क्या करने से खुशी मिलेगी ? क्योंकि तेरहवीं आत्मा की शांति के लिए ही होता है । वैसे तो जीवन रहते ही किसी के लिए कुछ करने का महत्व है ।

        

           

Comments

  1. Truly heart touching....

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  2. Man ke antardwandh ko sahi likha hai. Sach to saral hota hi hai. Ab wo n rahe, to sabse achchhi shradhanjali unke apane ko pura karne mein hi ho sakti hai, Anya kisi cheej, pratha mein nahi. Jis din unke sapno mein pankh lageinge usi din unko Khushi bhi hogi. Baaki to aadmi samaj ki awaj ko santusht karne ke liye prathayein hain. Isi kaam mein aatma ki shanti wali baat bhi puri ho jaati hai.ek teer se do shikar. Kasht to tab hota hai jab is karmkand ke vidwan bhi anek paida ho kar, confusion aur krodh ko aamantran dene lagte hain. Ant mein Satya kuchh bhi nahi. Jo dekha usko mante nahi, apni vyakhya dete aur jisko nahi dekh paate uska ahsas samajh nahi paate aur logo ko dikha nahi paate. 👐

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  3. आपकी लेखनी गहरी संवेदनशीलता और समाज की परंपराओं पर विचारोत्तेजक प्रश्न उठाती है। आपने मृत्यु, उसके बाद के कर्मकांडों और स्त्रियों पर थोपे गए रीति-रिवाजों को जिस तरह से प्रस्तुत किया है, वह अत्यंत प्रासंगिक और वास्तविक है। किसी प्रियजन को खोने का दर्द और परंपराओं का बोझ वाकई असहनीय होता है, और यह जरूरी है कि हम इन परंपराओं पर पुनर्विचार करें। आपने सही कहा कि आत्मा की शांति के लिए कर्मकांड से अधिक जीवन में प्रेम, सम्मान और खुशियां देने का महत्व है। आपकी यह सोच प्रेरणा देती है कि हर परंपरा को समय और संवेदनाओं के अनुसार परखा जाए।

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  4. Neelam Upadhyaya10 March 2025 at 21:58

    Jo ritiya kuritiya ban jaye unko todna naye pidhi ka dayitva hai . Meyray papa kay swargwas honay kay baad bhaiyo nay ma kay saath ye sub nahi honay diya unhonay swecha say suhag kay chinha tyag diye . Pati patni ka rishta atma ka hota hai jo amar hai . Pati kay divangat honay kay baad stri apni icha say jo tyagna chahe kare kisi ko badhit kerna galat hai .

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