बिटिया रानी

 घर में आई बिटिया रानी

मेरी प्यारी सी गुड़िया रानी

आँखें भींचे मुट्ठी बाँधे

आई है पापा की प्यारी


उसकी किलकारी से घर है चहकता

नन्हे पैरों में पहन वो पायल 

जब रुनझुन - रुनझुन चलती

तब मेरा मन विह्वल होता


दादा जी का ऐनक छिपाती 

दादी को छड़ी पकड़ाती 

और मुझे शीतल जल दे

ताली बजा वह खुश हो जाती।


कभी खेलती गुड्डे - गुड़ियों से

कभी उठा बैट खिलाड़ी बन जाती

कभी विद्यार्थी मुझे बना शिक्षक बन मुझे पढ़ाती

और कभी चुनरी को ओढ़ दुल्हन भी बन जाती 


दुल्हन बन जब मुझे रिझाती

तब वह मुझको कम ही भाती

तत्क्षण उसकी सखी मैं बन जाती

और उसको यह समझाती


प्यारी बिटिया एक बात जान लो

अपने जीवन के मूल्य पहचान लो

शिक्षा, स्वावलंबन, उठाकर सिर को जीना

है यही स्त्री का सच्चा गहना

इसको है तुम धारण करना


इस आभूषण से ही है तुमको संवरना

आभूषित हो इस गहने से

जग में मेरा नाम तुम करना॥




























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