संकल्प शक्ति

    क्या कोई स्त्री विवाहोपरांत 30+ या‌ 40+ पर अपनी योग्यता के आधार पर अपनी पहचान नहीं बना सकती ? 50+ इसलिए नहीं लिख रही कि तब तक उनके पति सरकारी पद से सेवानिवृत्त हो गए होते हैं या होने वाले होते हैं।

        प्रत्येक इंसान को स्वयं की पहचान अवश्य बनानी चाहिए ऐसा मेरा मानना है। आज इस विषय पर इसलिए लिख रही कि मैं जानती हूॅं कि बहुतों को ऐसा लगता है कि मैं अपने पति के सरकारी पद का इस्तेमाल कर "ऑल इंडिया रेडियो" में पहुॅंची हूॅं । हाॅं, बस वो मेरे समक्ष नहीं बोलते।

     मैंने सबसे पहले 2015 में पहली कहानी "बालमन" लिखी थी। जिसको पढ़ने के बाद पतिदेव ने कहा "तुम लिखती क्यों नहीं ? लिखा करो।" उस वक्त लगा ऐसे ही कह दिए होंगे । लेकिन यह कहने के पीछे एक बहुत बड़ा कारण यह था कि मैं 2014 की लम्बी अस्वस्थता के कारण अवसाद से ग्रसित थी और अब मैं शारीरिक रूप से गृहकार्य करने में भी समर्थ नहीं थी । 2014 से पहले बच्चों को मैं ही पढ़ाती थी लेकिन अब उसमें भी मेरा मन नहीं लगता था। जबकि बच्चों को पढ़ाना मुझे बहुत पसंद था। इसीलिए पतिदेव को लगा कि मैं उसी में व्यस्त रहूॅं। लेकिन मुझे अपनी क्षमता ज्ञात थी । पढ़ाई में कभी अव्वल रही नहीं तो मुझे लगता था कि मैं क्या ही लिख पाऊॅंगी? फिर उसी दौरान मेरा परिचय रचना भाभी (भइया‌ के दोस्त की धर्मपत्नी) से हुआ और वह बार-बार मुझे लिखने के लिए प्रेरित करतीं थीं। फिर मैंने ब्लॉग पर लिखना शुरू किया लेकिन पब्लिश बिना रचना भाभी की अनुमति से नहीं करते थे। मेरे पतिदेव खुश थे कि मैं अस्वस्थ होते हुए भी ये काम कर लें रही।

        ये तो हुई कहानी, संस्मरण और कविता की बात अब भजन। मैंने सबसे पहले एक देवी गीत लिखा था और उसी समय मैं गाना गाना भी सीख रही थी, रमन सर से।हम दोनों में गुरु -शिष्य से ज्यादा भाई - बहन का रिश्ता है। अब रमन सर और रचना भाभी दोनों पीछे पड़ गए "बहुत अच्छा लिखती हैं‌ लिखिए।"  मैंने कई भजन लिखे लेकिन अभी भी बहुत सीखना है, जिसमें भइया और रमन सर बहुत सलाह देते हैं। हालांकि सलाह केवल रमन सर देते हैं भइया से डाॅंट खाकर सीखते हैं।

         सबसे अंत में "ऑल इंडिया रेडियो" जिसके लिए लोग सोचते हैं कि मैं अपने पति के सहारे वहाॅं पहुॅंची हूॅं। राॅंची में रहते हुए मेरा फेसबुक के माध्यम से मधु दीदी (जिनकी शिक्षा - दीक्षा इलाहाबाद से हुई थी) से दोस्ती हुई,फोन नम्बर का आदान-प्रदान हुआ और अब हम दोनों में बातचीत होने लगी। बातचीत के दौरान ही उन्होंने मुझे टाॅकर का फाॅर्म भरने को कहा और मैंने भर दिया। ऐसे मेरा प्रवेश ऑल इंडिया रेडियो में हुआ। इसमें मेरे पतिदेव का यह योगदान रहा कि उन्होंने हर जगह मेरा साथ दिया । मुझे दो बार कविता बोलने का अवसर मिला और मुझे कोई महत्वपूर्ण अवसर मिले‌ और मैं अस्वस्थ ना हूॅं ऐसा हो‌ नहीं सकता तब उस दौरान वह मेरा पूरा सहयोग करते हैं। सहयोग का अर्थ यह नहीं कि वो लिखते हैं, उस दौरान मेरे खान-पान(खास तौर पर नारियल पानी)का ध्यान और अगर मैं लिख रही हूॅं तो मेरे लिखने में व्यवधान ना पैदा हो इसका भरपूर ध्यान रखते हैं ।

      तो यह है मेरी ऑल इंडिया रेडियो पहुॅंचने की कहानी। पतिदेव के सहयोग के बिना मेरा कुछ करना संभव नहीं लेकिन मैंने कभी उनके पद का उपयोग नहीं किया। 

        


 

Comments

  1. Natural aur sukhad jeevan yatra ke un lamho ko kalam se achchha likha hai ye aur logo ke liye prerak honge. Aap apni yatra ko nayee unchai dein. Good Luck

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  2. प्रेरक प्रसंग।

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  3. Pata nahi logon kyon lagta hai ki aurat pati ki vajah se hi kuch achieve kar paati hai…. But reality ye hai ki kai opportunities vo family bachche ya pati ki vajah se miss kar deti hai… Nahi to pata nahi kahan pahunch chuki hoti.
    Shaadi ke baad pati sirf wife ke talent ko pahchaan kar use himmat hi de sakta hai… Talent nahi de sakta. Vo aurat ka apna hi hota hai. To pati ki himmat ke bal par aurat kamaal karti hai… pati ki post ke bal par nahi.

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