पुनःप्रारम्भ

        “हार नहीं मानूँगा रार नहीं ठानूँगा” अटल जी यह कविता सभी को प्रिय होगी ऐसा मेरा मानना है । मुझे भी यह कविता अति प्रिय है और अब तो और प्रिय हो गई जब मैंने “12th फेल” फ़िल्म देखी । मुझे पुरानी फिल्में और गाने पसंद हैं, नई फ़िल्में और उनके गाने कम ही पसंद आते हैं लेकिन अगर नई फ़िल्म पसंद आ गई फिर तो उसको कई बार देख सकती हूँ जैसे “थ्री ईडियट्स , चक दे इंडिया और दंगल ।भइया ने “12th फेल” के लिए ट्वीट किया था, “बेहतरीन फ़िल्म है हर छात्र को देखनी चाहिए।” फिर मैंने यूट्यूब पर मनोज शर्मा और श्रद्धा जोशी का इंटरव्यू देखा तब तो दृढ़ निश्चय कर लिया कि फ़िल्म देखनी है और कुची आद्या को दिखानी भी है।

            कुची राँची में ही थे और पतिदेव बाहर । इंटरव्यू देखकर मैं यह तो समझ गई थी कि यह फ़िल्म मुझे पसंद आएगी और मैं पुनः देख सकती हूँ पतिदेव के साथ । बच्चों के साथ फ़िल्म देखी ,बहुत ही बेहतरीन फ़िल्म । ना केवल छात्रों को बल्कि उनके माता - पिता को भी अवश्य देखनी चाहिए।

       यह फ़िल्म पसंद आने का कारण ना केवल मनोज जी का संघर्ष बल्कि मैं देश के सबसे कठिन परीक्षा देने वाले माहौल में रही हूँ और अब फिर रहने वाली हूँ । पहले भइया और उसके दोस्तों को संघर्ष करते , हारते और फिर जीतते देखा और अब अपने बेटे को संघर्ष करते देखूँगी । फ़िल्म देखते वक्त जब “ गौरी भइया” अंतिम प्रयास में असफल होते हैं तब मेरी आँखें भी नम हुईं और भइया का संघर्ष याद आ गया। अंतिम प्रयास में जब वह असफल हुआ तब घर में छाया सन्नाटा और भइया का एकदम चुप हो बरामदे में खड़े चेहरे को भूलना संभव नहीं ।उस समय वो एजी ऑफिस में कार्यरत था । जब वह बहुत दुखी था तब दुर्गेश भइया का यह कथन , “ तुम्हारे पास तो जॉब है स्कंद हम सब के पास वो भी नहीं ।” 

         भइया जब सिविल सर्विस की तैयारी कर रहा था तब मम्मी अशोक चाचा (जो पुलिस अधीक्षक पद पर कार्यरत थे ) और जितेन्द्र मामा (जो भारतीय विदेश सेवा में कार्यरत थे ) का उदाहरण देती थीं । बच्चे सामान्यतया अपने पिता से पढ़ाई करने के लिए डाँट खाते हैं लेकिन मेरे यहाँ भइया नहीं उसके दोस्त डाँट खाते थे कि वो ना पढ़ते हैं ना कुक्कू को पढ़ने देते हैं । डाँट खाने वालों में पहले नम्बर पर विकास भइया थे ।

          अब देश की सबसे कठिन परीक्षा देने की तैयारी मेरा सुपुत्र कर रहा और मैं उसे भइया और उसके दोस्तों का उदाहरण देती हुए कहती हूँ ,” भइया और उसके दोस्त जब परीक्षा देकर आते थे तब जो बहस होती थी उसके बारे में क्या कहूँ । सबको डीडी बासु , बिपिन चंद्रा की किताब, एनसीआरटी की किताबें रटी थीं। किस पेज के किस पैरा के किस लाइन में क्या लिखा है वह सब उन लोगों को याद था । यह सब बातें बता मैं कुची को प्रोत्साहित करती हूँ। 

           कुची में एक जुनून दिखता है जिससे मुझे डर लगता है कि अगर सफलता ना मिली तो ? मैं उसको हमेशा बोलती हूँ अगर असफल हो भी गए तो अगर गंभीरता से पढ़ रहे तो उस ज्ञान से कुछ ना कुछ तो कर लोगे , बस निराशा को हावी मत होने देना । लेकिन उसका जवाब हर बार एक ही होता है , “ हो जाएगा परेशान मत हो ।” 

          कल क्या होगा मालूम नहीं लेकिन इतना विश्वास है कि वो गंभीरता से पढ़ रहा तो अगर उच्च परीक्षा में असफलता भी मिली तो ज्ञान व्यर्थ नहीं जाएगा और कुछ ना कुछ तो कर ही लेगा । अंत में  यही कहूँगी “उठो जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए ॥”





Comments

  1. अभी हमने देखी नहीं ये फ़िल्म ,हाँ मौक़ा मिलते ही देखेंगे सबके साथ 😊

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  2. Wakai phir utho aur aage ek prayas aur jaisi soch hi jeevan mein kuchh prapt hone ka mauka deti hai. Himmat bikharta bhi hai usko sambhalna phir se batorna aana chajiye. Kaan se jayada aankho ki grasping power hoti hai, isliye ye ak achchhi film hogi. Use dekhne aur bachcho ko dikhane ke liye Dhanywad. Anya log bhi aisa chahein to karein, harz nahi hai isme.

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  3. मैंने भी इस फ़िल्म की बहुत प्रशंसा सुनी है पर अभी देखा नहीं।

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