अनकहा प्रेम

 हमारा प्रेम कितना विचित्र 

अनकहा , अनछुआ


अनदेखा कहना

तुम्हारे उस प्रेम का 

अपमान करना होगा


और मुझमें वह शक्ति नहीं

कि तुम्हारे अनकहे प्रेम को

मैं समझी नहीं , यह कहूँ


अपने मुख मंडल से वह

अथाह प्रेम छिपाने में

तुम्हारे चक्षु सदा नाकाम रहे


और, तुम्हारे भाव को समझकर 

नासमझ बन तुम्हें अपने

भाव से अनभिज्ञ रखा


तुम्हें तो मेरा नाम ज्ञात है

और मैं आज भी नाम जानने

की इच्छुक हूँ 


हमारा अनकहा व अनछुआ

प्रेम आज भी जीवित है

है ना ?







Comments

Popular posts from this blog

बात ही बात

कर्मकांड

बिटिया रानी