पंद्रह दिन
आ रहे हैं हमारे दिन
पंद्रह दिन हैं हमारे,
जब हमें नियम से पानी
तिथि पर भोजन
और मिलेगी मिठाई भी
किंतु अब मन भर गया
नहीं पीना तुम्हारे हाथ का पानी
और ना खाना भोजन
जीवित रहते ना रखा ध्यान
अंत समय अथाह कष्ट में
स्वयं पिया और पिलाया जल
फिर यह दिखावा क्यों
समाज का डर या पितृ दोष का डर
बंद करो यह सब
मन खिन्न होता
तुम्हारे नक़ली दिखावे से
आत्मा बेचैन हो उठती है
रखना था ध्यान
और देना था प्रेम
तो जीवित रहते देते
ना डरो हमारे प्रकोप से
माँ - बाप हैं , शत्रु नहीं
कुछ ना करने पर भी आशीष ही देंगे
मेरी तृप्ति की इच्छा चाहो तो
बेसहारा वृद्धों की सेवा कर
मुझे अब शांति प्रदान करो ॥
Nice line
ReplyDeleteबहुत सुंदर !!
ReplyDeleteVery nice👌👌
ReplyDeleteThis is true!
ReplyDelete👌👌
ReplyDeleteJeevan ke asal mayne. Yatharthparak abhivyakti likhi hai aapne. Swaym ko santosh aur atmbal jis se mile, usi marg ka anusaran karta hai manav. Aapke udgar insano ke liye hai, manav ke liye nahi.----Brajesh
ReplyDeleteबहुत सही बात कही
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