खोया बचपन

नन्हे - मुन्नों का खोया

है वो बचपन, जिया था

जिसको हमने जी भर


गर्म हवाओं और सर्द दुपहरी में

नहीं खेला करते अब वो

जैसा हम खेला करते थे


नहीं करते अब हठ

परी कथा सुनाने 

और चाँद को कुर्ता सिलवाने की


अपने में रहना आता है रास

खेल- खिलौनों के नाम पर

रखते मोबाइल या आधुनिक गैजेट की आस


सुन लेते डपट माँ - बाप की 

किंतु अन्य की फटकार

को लेते उर पर


नहीं है त्रुटि इसमें

उन नन्हें - मुन्नों की

दोषी, हैं इसके हम सब ही


नहीं रहा अब वैसा समाज

जीवन मूल्यों का हुआ ह्रास

परिजन भी हुए आधुनिकता के शिकार


किंतु , अब समझना और 

समझाना होगा, बालमन को

वे ही हैं भविष्य देश के


स्वस्थ शरीर में ही रहता स्वस्थ मन 

के ज्ञान से अवगत करा

गढ़ना होगा उनका भविष्य


पुस्तकीय ज्ञान  और 

खेल-कूद की

महत्ता समझाना होगा


देकर उनको भरपूर समय

मोबाइल से दूर किन्तु

अपने क़रीब लाना होगा


लौटा उनके बचपन को

अपराधबोध मिटा अपना

उनके भविष्य को  उज्ज्वल करना होगा॥



















Comments

  1. यह कविता नन्हे-मुन्नों के खोए हुए बचपन की एक मार्मिक झलक प्रस्तुत करती है। आज की आधुनिकता में, बच्चों का बचपन मोबाइल और गैजेट्स के कारण खो सा गया है। कविता हमें याद दिलाती है कि बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए हमें उन्हें सच्चे अर्थों में समय देना होगा और उन्हें अपने करीब लाना होगा।

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