याददाश्त
मैं और मेरी याददाश्त,क्या ही कहूँ इसके बारे में।कभी-कभी याददाश्त के कारण बड़ी embarrassing स्थिति उत्पन्न हो जाती है।उस समय लगता है धरती फटे उसी में समा जाऊँ।और कभी-कभी बहुत चिड़चिड़ाहट होती है कि मैं ऐसी क्यों हूँ।इसी याददाश्त के आधार पर अनगिनत बार मैं “घमंडी” शब्द से भी सुशोभित हुई हूँ।
सबसे ज़्यादा ख़राब याददाश्त मेरी लड़कों और किसी वस्तु के क्रय मूल्य से संबंधित है।वस्तु का क्रय मूल्य तुरंत भूलती हूँ और लड़कों का ना नाम याद रहता है ना शक्ल।भइया के एक मित्र से तो झगड़े जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई थी।भइया के घर पर ना रहने की स्थिति में मुझे ही उसके दोस्तों को बताना होता था कि वो घर पर नहीं है।यह मेरे लिए बहुत भारी काम होता था, क्योंकि जैसे ही वो घर से निकलता था वैसे ही अनगिनत मित्रों का आना शुरु हो जाता था।इनमें से कुछ के नाम और शक्ल दोनों याद रहते थे तो कुछ के केवल नाम, वहीं कुछ के केवल शक्ल और कुछ के ना नाम याद रहते थे और ना शक्ल।
भइया के एक दोस्त इत्तेफाकन तभी आते थे जब वो घर पर नहीं होता। मुझे उनकी शक्ल तो याद हो गई थी लेकिन नाम याद नहीं हो रहा था।नाम पूछने पर इतना धीमें स्वर में नाम बताते थे कि सुनाई ही नहीं देता था।अपने दोष को छिपाने के लिए मैंने भइया से बोल दिया, वो गूँगे हैं क्या?(भइया के दोस्त) भइया ने यह बात अपने मित्र को बोल दी और उन्होंने प्रतिउत्तर में मुझे बहरी कह दिया।(लगता है वो मुझसे खार खाए बैठे थे)
विवाहोपरांत किसी अंजान लड़के को जान-पहचान का लड़का समझ उससे मिठाई की फ़रमाइश कर बैठी थी और उस बेचारे ने मिठाई खिलाई भी थी।इस घटना के बाद से मैं जिसको पहचानने में असफल रहती उससे बात करने की पहल नहीं करती।लेकिन मैं तो महान हूँ एक बार पुनः किसी को अन्य समझ कर गलती कर बैठी।
एक शाम जानकी मेरे घर पर थी और मैं कुछ काम कर रही थी कि मोबाइल बज उठा।जानकी ने मुझे मोबाइल देते हुए कहा, “किसी अमोल का फ़ोन है”।मैंने दिमाग पर जोर डालते हुए ना पहचान पाने की भाव-भंगिमा बनाकर कहा, “अब ये अमोल कौन है?” स्क्रीन पर डॉ अमोल का नाम देख आदर सहित बोली, “अरे ये तो डॉ साहब हैं” और बात करने के लिए फ़ोन उठा लिया।औपचारिक बातचीत के उपरांत मेरी और डॉ अमोल की बातचीत-
“मैंम, आप उपाध्याय अंकल को जानती हैं ?”
“ हाँ,जानती हूँ।”
“आंटी का मोबाइल नंबर होगा
“आंटी! उनकी तो डेथ हो गई।”
डॉ अमोल ने चौंकते हुए पूछा, “अरे! कब ?”
“बहुत साल हो गए” मैंने उत्तर दिया
डॉ अमोल ने विश्वास भरी आवाज़ में कहा, “अरे नहीं, वो ज़िन्दा हैं।”
अब मैं परेशान कि डॉ अमोल किस उपाध्याय आंटी की बात कर रहे।डॉ अमोल ने फिर मुझे याद कराने की कोशिश की।
“अरे वो आपके घर के पास रहते हैं और उपाध्याय अंकल आपको बहुत अच्छे से जानते हैं।”
मैंने भी प्रतिउत्तर में कहा, “हाँ मैं भी बहुत अच्छे जानती हूँ लेकिन आंटी की डेथ हो चुकी है।”
अब डॉ साहब का स्वर थोड़ा बदल गया था, “अरे नहीं मैम,वो ज़िन्दा हैं।आपके घर के ही पास तो रहते हैं,छोटे क़द के हैं।”
मैंने पुनः प्रश्न भरी आवाज़ में कहा, “छोटे? लेकिन वो तो लम्बे क़द के और सांवले से है।”
“नहीं मैम,वो छोटे क़द के हैं और पहाड़ी हैं और आपको बहुत अच्छे से जानते हैं।”
डॉ साहब के बार-बार यह बोलना कि वो मुझे बहुत अच्छे से जानते हैं , मुझमें झुझंलाहट पैदा कर रही थी।अब मैं जानकी की ओर रुबरू हुई और जानकी से पूछा उसके घर के नीचे जो रहते हैं उनका नाम क्या है तो बोली वो पाण्डे हैं।जानकी की याददाश्त अच्छी है तो मैंने उसी से पूछा ये उपाध्याय पहाड़ी कौन हैं? जानकी सोच ही रही थी कि डॉ साहब बोले अरे,वो आपकी लाइन में रहते हैं।उनके इतना बोलते ही मैंने चहकते हुए कहा, “ हाँ,एक पहाड़ी हैं।”
अब मैं उन ‘उपाध्याय’ को पहचान चुकी थी लेकिन केवल नाम से।अभी भी वो मेरे सामने आ जाएँ तो मैं पहचान नहीं सकती।वास्तव में देखा जाए तो हम सब उन्हीं लोगों को याद रखते हैं जिनसे लगाव होता है या नफ़रत।
Wah ri duniya, ek to bhulakkadi us par safai jisko chahna usko hi yaad rakhna. Are bhai jo aapki nazar mein special nahi bante wo kuchh dino ke baad bhula hi jaate hain aur jo upyogi aur khas hote hai wo baar baar milte w baat karte hai aur wo kam bhoolte hain. Philhal yaad aaya main laun bhai
ReplyDelete😀
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ReplyDeleteIntresting 😀
ReplyDeleteI remember this story😆
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