मिलन
कितने दिनों से अस्पताल में भर्ती हूँ याद नहीं आ रहा।उम्र हो गई है और रही सही कसर बिमारी ने पूरी कर दी। चारों ओर आँख घुमाकर देख लिया पंकज कहीं नहीं दिख रहे थे।पंकज को अपने पास ना देखकर मुझे बेचैनी हो रही थी कि नर्स ने पास आकर कहा, “ परेशान मत होइए आपके पति और बच्चे बाहर हैं, दरवाज़े की ओर देखिए।” शायद वो मेरी will power बढ़ाने की कोशिश कर रही थी।लेकिन अब मैं हिम्मत हार चुकी थी।कमजोर फेफड़ों के साथ इतने साल जी ली क्या ये कम था?
बहुत हिम्मत करके मैंने दरवाज़े की ओर देखा तो पंकज और दोनों बच्चे बाहर खड़े दिखे।साथ में कोई और भी था।कहीं ये ललित तो नहीं? एक तरफ़ दिल बोल रहा था ये ललित ही है तो दूसरी ओर दिमाग़ कह रहा था कि ललित यहाँ कैसे हो सकता है? तभी बेटा अंदर आया और चहकते हुए बोला, “मालूम है ललित अंकल आए हैं तुमसे मिलने।”
मैं मुस्कुरा दी थी ललित का नाम सुनकर। “आज 29 मई है क्या” मैंने लड़खड़ाती आवाज़ में अपने बेटे से पूछा।उसने आश्चर्यचकित होकर मेरी ओर देखा और हाँ में सिर हिला दिया।मैं एक बार फिर मुस्कुरा दी।
पंद्रह-सोलह साल पहले 29 मई की दोपहर मोबाइल बज उठा था।देखा तो नम्बर था,नींद में थी बात करने का मन तो नहीं था लेकिन तब भी चिड़चिड़ाते हुए फ़ोन उठा लिया।मेरे हेलो बोलते ही उधर से एक पुरुष ने पूछा, “कविता जी?” मैंने झल्लाहट भरे स्वर में कहा जी, बोलिए।उसने उत्तर दिया मैं ललित।इस जवाब से मैं और झल्ला गई और पूछा कौन ललित? उसने उतनी ही मधुरता से कहा साथ पढ़े हैं।मेरी नींद ग़ायब हो चुकी थी।मैं थोड़ी देर शांत रही फिर पूरे विश्वास से बोली लेकिन मेरे साथ तो कोई ललित नाम का लड़का नहीं था।तुम्हें क्लास का कोई लड़का याद है उसने पूछा।मैंने तपाक से उत्तर दिया, “हाँ एक लड़का याद है नाम तो नहीं याद लेकिन ओझा सरनेम था।” वो क्यों याद है? उसने पूछा।अरे वो अपनी बहन का रिश्ता लेकर घर आया था।अब तुम बताओ तुम कौन हो? नहीं तो मैं फ़ोन रख रही मैंने तेज आवाज़ में कहा।उसने तुरंत बोला मैं उसी का दोस्त हूँ अब याद आया? हाँ उसका एक शॉर्ट हाइट का दोस्त याद है। मैं वही हूँ, उसने जवाब दिया।मैंने आश्चर्य से बोला, “क्या? तुमने मुझे खोजा कैसे? मुझे तो तुम्हारा नाम तक नहीं मालूम था।” मुझे तो तुम्हारा नाम मालूम था। मेरे कई दोस्तों से तुम जुड़ी हो एफ़बी पर,वहीं से खोज निकाला उसने जवाब दिया।ओह मैंने ठंडा जवाब दिया और सामान्य बातचीत के बाद उसने जुड़े रहने और बात करते रहने का वादा ले फ़ोन रख दिया।
शाम पंकज के ऑफिस से आते ही चहकते हुए बोली, मालूम है आज ललित का फ़ोन आया था।अब ये ललित कौन है? पंकज ने आश्चर्य से पूछा।साथ पढ़े हैं मैंने जवाब दिया।दोस्तों की कमी नहीं है पंकज ने लापरवाही से जवाब दिया और कपड़े बदलने चले गए।ललित और अपने बीच हुई सारी बातें बता दी मैंने पंकज को।अब अक्सर ही हम-दोनों के बीच बात हो जाया करती थी।(सामान्य दोस्तों की तरह)
ललित की बेटी की सगाई हो रही थी उसने मुझे भी आमंत्रित किया और बोला इसी बहाने सारे दोस्तों का मिलना हो जाएगा।मैंने सहर्ष निमंत्रण स्वीकार कर लिया और आने का वादा कर दिया।पंकज को जैसे ही ललित के निमंत्रण के बारे में बताया तो उन्होंने रूखे स्वर में कहा “क्या करोगी जाकर?” अरे इसी बहाने सारे दोस्तों से मिलूँगी सालों बाद, मैंने जवाब दिया।बच्चे भी बोल रहे मुझे जाना चाहिए। “मुझे लगता है ललित तुम्हें पसंद करता है” पंकज ने कहा।पंकज के मुख से यह सुन मैं सन्न रह गई।“दोस्ती उसी से होती है जिससे प्रेम होता है जिसे हम चाहते ही नहीं उससे क्यों दोस्ती करेंगे? ललित अगर ललिता होती तो शायद समस्या ना होती? लगता है आपके अनुसार भी एक लड़का-लड़की कभी दोस्त नहीं हो सकते।”(मैंने प्यार किया फ़िल्म के इस डायलॉग से मैं कभी सहमत ना हो पाई) खुद को संयत कर मैं एक साँस में सब बोल गई।और ना जाने का निर्णय भी सुना दिया।मैं समझ नहीं पा रही थी कि जब पंकज की महिला मित्रों से मुझे कोई समस्या नहीं तो पंकज को मेरे पुरुष मित्र से मिलने में समस्या क्यों? ऐसे तो नहीं थे पंकज? शायद इसका कारण ललित का अचानक प्रकट होना था।
मेरे सगाई पर ना पहुँचने पर ललित व अन्य दोस्त निराश हो गए थे।ख़ैर इस बीच मेरी और ललित की दोस्ती गहरी होती जा रही थी।इसका मतलब यह नहीं था कि मैं पंकज के क़रीब नहीं और ललित अपनी पत्नी के क़रीब नहीं था।
आज इतने सालों बाद ललित मुझसे कुछ दूरी पर खड़ा था।एक बार पंकज से मैंने कहा था “मरने से पहले मैं अपने सारे दोस्तों से मिलना चाहती हूँ।” बाहर पंकज और ललित मालूम नहीं क्या बात कर रहे थे और मैं यह सोचकर परेशान थी कि आख़िर ललित को कैसे मालूम हुआ कि मैं अस्वस्थ हूँ।मैं प्रश्न भरी नज़रों से बेटे को देख रही थी कि बेटा बोला, “पापा ने ही ललित अंकल को बुलाया है तुमसे मिलाने के लिए।” ओह! तो पंकज मेरी अंतिम इच्छा पूरी कर रहे।हल्की मुस्कान आ गई थी चेहरे पर।मुस्कुराती हुई कितनी अच्छी लगती हो बेटे ने कहा।
पंकज ललित को दरवाज़ा खोलकर अंदर ला रहे थे।मेरे पास पहुँचने ही वाला थे ललित और पंकज कि उनसे पहले मेरे कान्हा ने अपनी मधुर मुस्कान के साथ मेरी ओर हाथ बढ़ा दिया और मैंने भी बिना देर किए उनका हाथ थाम लिया।
Shayad title punarmilan jyada uchit hoga. Pardarshi sambandho ki ushmta naye aur swasth sambandh bana hi dete hain, shayad isiliye Pankaj ant mein Lalit ka milan karane mein sahyog karte hain. Har sambandh mein ek dosti ka element usko naya jivan de jata hai. Prabal hoti dosti ko khoobsurat mod kanha ne di hai, jo vyagr aatma ko ek thahrao de rahi prateet hoti hai. Ek khoobsoorat abhivyakti ant mein n jaane kyon phir rahasya ban gayi... Lekhan shailli swabhawik aur pathak ki utsukta ko barkarar rakhti hai. Kripye series-2 bhi likhein.
ReplyDelete🙏🙏🙋♂️
🙏
Deleteसंकीर्ण पुरूष मानसिकता का बहुत सटीक चित्रण किया है आपने, लोग अक्सर ऐसे दोहरे मानदंडों की वजह से कई सच्चे रिश्तों से हाथ धो बैठते है
ReplyDelete🙏
ReplyDelete