विदाई

 कौन कहता है बेटों की विदाई नहीं होती

विदाई तो बेटों की भी होती है

बस अपनी विदाई पर रोते नहीं।

कभी पढ़ाई कभी कमाई 

इन सबके लिए होती है विदाई।

दिल भी पास, दर्द भी साथ 

दर्द को छिपाना होता है

अश्रु को पलकों से थामना होता है

थामने में असमर्थ होने पर

लड़के हो,क्या लड़की सा रोते हो?

यह सुनना पड़ता है

और फिर रोने का अधिकार त्याग

पुरुषत्व के दिखावे मे 

जीने को विवश होते हैं

सच ही तो है बेटे

नहीं रोते अपनी विदाई पर

कौन कहता है बेटों की विदाई नहीं होती

बस अपनी विदाई पर रोते नहीं।


Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

बात ही बात

कर्मकांड

बिटिया रानी