गुदगुदाते पल
आज फिर एक बार हनुमान चालीसा पढ़ते वक्त मुस्कान आ गई।भगवान भी परेशान हो गए होंगे मुझ जैसी पुजारिन से।क्या करूँ मैं हूँ ही ऐसी।
बीता हुआ कल किसी ना किसी रुप में कभी ना कभी सामने आता ही है।आजकल तो कुची के बीते हुए कल को छोटे बच्चों में देखती हूँ और मुस्कुरा उठती हूँ उन दिनों को याद कर।बच्चे छोटे होते हैं तब लगता है कितनी जल्दी बड़े हो जाएँ और जब बड़े हो जाते हैं तब लगता है छोटे ही अच्छे थे।लेकिन उनके बाहर जाने के बाद उन की बचपन की यादें तो दिल को गुदगुदाती ही हैं।ऐसी ही कुछ यादें मेरी भी हैं जो गाहे-बगाहे याद आ ही जाती हैं।
परीक्षा के समय हम सबको भगवान अवश्य याद आते हैं,आद्या को तो उस समय विशेष रूप से भगवान याद आते हैं।उन दिनों प्रतिदिन शाम को मंदिर जाना उसकी आदत में शामिल हो जाता है।इसी क्रम में मैं भी उसके साथ मंदिर चली जाती हूँ।
एक दिन आरती के समय हम दोनों मंदिर पहुँच गए,आरती चल रही थी कि एक छोटी बच्ची (दो-अढ़ाई साल की) सबको हटाती हुई सबसे आगे पहुँच गई और हाथ जोड़कर खड़ी हो गई (मनमोहने वाला दृश्य) और जैसे ही आरती ख़त्म हुई षाष्टांग प्रणाम।मोबाइल नहीं था वरना एक फ़ोटो तो जरूर लेती उस प्यारी बच्ची की।उसी वक्त कुची की भी हरकत याद आ गई।
धनबाद प्रवास के दौरान कॉलोनी के पास ही मंदिर था। जहाँ मैं ना के बराबर और कुची नित्य जाता था अपने दुखन काका के साथ।कुची चार-पाँच महीने का रहा होगा जब वो दुखन के संपर्क में आया।(दुखन सीबीआई कॉलोनी में काम करता था) दुखन को कुची के संदर्भ में यशोदा माँ का दर्जा देना पूर्णतया उपयुक्त होगा।आज भी उसके पर्स में कुची की फ़ोटो रहती है।कुची को मंदिर जाने की लत लग चुकी थी।मंगलवार और शनिवार तो सुंदरकाण्ड ख़त्म होने के बाद ही घर आता था।सुंदरकाण्ड और आरती ख़त्म होने से पूर्व उसको घर लाना दुखन के लिए असंभव था।जब ये सब सुनती थी तब लगता था कि शाही भइया (भइया के मित्र) ने कुण्डली देखकर सही ही बताया कि, “बेटे को भगवान में बहुत आस्था रहेगी।” झा भाभी के साथ भी पूजा करता था (बिना कोई शरारत किए)।तब भाभी हमेशा बोलती थीं, “एहेन बुद्धिमान बच्चा आजतक नए देखलों।” झा भइया,भाभी के अनुसार उन्होंने कुची जैसा समझदार बच्चा आज तक नहीं देखा।(मालूम नहीं ये गुण मुझे,जानकी और आनंद सिंह को क्यों नहीं दिखते उसमें) इलाहाबाद मेरे घर जाता तो मंदिर में हाथ जोड़े खड़े मिलता और उसको इस रूप में देख घर वाले अभिभूत।
दिल्ली और लखनऊ में मंदिर जाना ना के बराबर हो गया और फिर कुची को कभी पूजा करते भी नहीं देखा।उस समय लगा शायद भगवान में आस्था ना होगी।मैं इन सब मामलों में ज़बरदस्ती नहीं करती और सच कहूँ तो ध्यान भी नहीं दिया।कुची तेरह साल के हो चुके थे।उसी समय हम लोगों नैनीताल घूमने गए।सारी जगह देखने के बाद हम सब गोलू देवता के मंदिर भी गए (वहाँ गोलू देवता को पत्र द्वारा अपनी मन्नत बताई जाती है)।मंदिर की सीढ़ियाँ तीनों बच्चे (प्रणव,कुची और आद्या) फटाफट चढ़ रहे थे।मेरी निगाह तीनों बच्चों पर थी तभी मैंने देखा कि कुची सीढ़ियों से उतरते हुए हनुमान का रुप धारण किए व्यक्ति के पैर छू रहा है।उसे लगा कि उसे ऐसा करते किसी ने नहीं देखा लेकिन मैं देख चुकी थी।वापिस होटल आकर जब मैंने पूछा कि “तुमने पैर क्यों छुए ?”पहले तो हकबका गया फिर बोला “बस छू लिया।”
बात आई गई हो गई लेकिन मैं और जानकी इस बात को याद कर अक्सर हँसते थे। icse exam के दौरान मेरे बोलने पर भगवान को प्रणाम करके ही जाता था।परीक्षा खत्म होने पर फिर पहले जैसा।अब वो isc में था और कोरोना अपने चरम पर। लॉकडाउन लग चुका था और दूरदर्शन पर रामायण प्रसारित होने लगा था।कुची में रामायण देखने की बेचैनी रहती थी।नियत समय पर रामायण देखने बैठ जाता था और हर बार एक ही प्रश्न पूछता “हनुमान जी कब आएँगे?” और जिस दिन हनुमान जी का आगमन हुआ तो इतना ख़ुश जैसे साक्षात् हनुमान जी के दर्शन मिल गए हों।उसके बाद तो जयेष्ठ माह के मंगल का व्रत भी शुरु कर दिया और हनुमान चालीसा का पाठ भी।मैं भी खुश कि चलो वो भी मेरे और अपने मामा जैसा हनुमान भक्त बन गया।
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ॥
🙏
Nice description ☺️👍
ReplyDeleteApne bada Mangal ke Prasad ka bi dalna tha jo ap bhot man se wait karti thi
ReplyDeleteBachpan me hi bhagya ke beej chhipe hote hain har insaan mein. Is se positive energy milti hai. Agar aisa hai to achachha hai.
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