बीते हुए यादगार पल
कुछ dp ऐसी होती हैं कि आपको अपने ओर खींच ही लेती हैं।ऐसी ही dp मेरे एक मित्र ने लगाई, कब लगाई मुझे मालूम नहीं।मैंने उसे दो अप्रैल को देखी।
दो अप्रैल को कुची होली की छुट्टी मनाकर वापिस दिल्ली चला गया था।मन भारी और घर ख़ाली।कहीं मन नहीं लग रहा था तो मैं मन बहलाने के लिए व्हाट्सअप देखने लगी।उसी समय उस dp को देखा।पिता-पुत्री की मस्ती करते हुए फ़ोटो थी।पुत्री की आँखों और मुस्कराहट में शरारत झलक रही थी और पिता के चेहरे पर उस पल को भरपूर जी लेने का भाव। dp देखकर मन में ख़ुशी के भाव आ गए और मैंने उस दिन (केवल उस दिन नहीं तबसे प्रतिदिन)उस dp को अनगिनत बार देखा। शायद उसको देखकर कुची के जाने पर अपने दुख को कम करने की कोशिश कर रही थी।
ऐसा नहीं कि मैंने बच्चों के साथ मस्ती नहीं की हैं बस मेरे पास बच्चों के साथ मस्ती करते हुए फ़ोटो कम है, हाँ उनके पापा के साथ मस्ती वाली फ़ोटो है।बच्चे बड़े हो जाते हैं तो वहीं फ़ोटो और पल बहुत याद आते हैं।कुची को दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ना था सो वो चला गया। मैं ख़ुद भी चाहती थी कि वो बाहर जाए और बाहरी दुनिया से अवगत हो।घर से निकलेगा नहीं तो सीखेगा कैसे ?अभी आद्या पास है ईश्वर की कृपा रही तो वो भी दो साल बाद पढ़ने बाहर निकल जाएगी। तब वही फ़ोटो और वही मस्ती वाले पल बार-बार याद आएँगे।
मेरे एक भइया ने एक बार मुझसे कहा था, “बहन अब मालूम हुआ कि माँ बनना कितना कठिन है”।उस समय तो मैं हँस दी थी उनकी बात पर लेकिन सच में माँ बनना बहुत कठिन होता है। माँ ही नहीं पिता बनना भी बहुत कठिन होता है।कभी-कभी मन के भावों को छिपाना कठिन हो जाता है।बच्चों के बाहर जाने पर ख़ुशी,दुख और चिंता तीनों भाव होते हैं।बस ईश्वर से ही प्रार्थना है कि कुची जिस उद्देश्य के लिए दिल्ली गया है उसमें वह सफल रहे।
अंत में इतना ही कहूँगी कि बच्चों के साथ हर पल भरपूर जिएँ और फ़ोटो खींचकर दोस्तों के साथ साझा भी करते हैं।
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