मन की जद्दोजहद
आज इक्कीस दिन बाद कान्हा और दुर्गा जी को सज़ा रही थी।”स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन रहता है”।पूर्णतया सत्य है अस्वस्थता के कारण ना तो कोई काम कर पा रही थी और ना ही अपने कान्हा को तैयार कर पा रही थी।होली सिर पर थी और मैं बिस्तर पर।लेकिन कान्हा के लिए तो ख़रीदारी करने का जुनून सवार था मुझपर ।पतिदेव से कहा,”चलिए ना लड्डू गोपाल के लिए कुछ ले आते हैं”।पहली बार ब्रजेश ने दुखीऔर झल्लाहट भरे स्वर में कहा,”कुछ नहीं आएगा तुम्हारे लड्डू-गोपाल के लिए।इतनी सेवा करती हो तब भी तुमको ठीक नहीं कर रहे”।पहली बार मेरी किसी माँग को नकारे थे तो मैं समझ ही नहीं पाई कि क्या जवाब दूँ।ख़ैर काफी मनुहार के बाद सामान ले आए।
जन्मदिन,होली सब बिमारी में बीत गया।बस किसी तरह कभी कान्हा को तैयार कर देती थी तो कभी ऐसे ही भोग लगा देती थी।आज पूरे इक्कीस दिन बाद मन से कान्हा को तैयार कर रही थी और दुर्गा जी का श्रृंगार कर रही थी कि मोबाइल बज उठा।देखा तो बचपन की दोस्त का फ़ोन था।बात लम्बी होती इसलिए पूजा बाद बात करने का निश्चय किया।पूजा उपरांत फ़ोन किया तो हाल-चाल पूछने के उपरांत उसने मुझसे एक ऐसा प्रश्न कर लिया जो मुझे दो साल से टीस दे रहा था।उस टीस को कैसे निकालूँ समझ नहीं पा रही थी।उसके प्रश्न से पहले और लोगों ने भी मेरी बिमारी से संबंधित एक प्रश्न अक्सर पूछा है कि क्या मुझे झल्लाहट नहीं होती? तो इसका जवाब है कि हल्की-फुल्की तकलीफ़ पर तो मैं ध्यान ही नहीं देती (और यही मेरे ऊपर भारी पड़ जाता है) और जब बिस्तर पर एकदम पड़ जाती हूँ या डॉक्टर को दिखाने जाऊँ कुछ और निकल जाए नई बिमारी तो निराशा हावी हो जाती है।चिड़चिड़ाहट भी होती है कि अब एक और बिमारी😔।और मेरी चिड़चिड़ाहट बच्चों और पतिदेव पर निकलने लगती है।घनघोर निराशा के अंधेरे में चली जाती हूँ उस समय घर का माहौल बहुत भारी हो जाता है और घर यंत्रवत चलता है। घर का भारी माहौल और अपने को निराशा से निकालने के लिए फिर मैं अपने ख़ास लोगों की सकारात्मक बातों को याद करती हूँ और फिर से अपने अंदर नई ऊर्जा का संचार करने लगती हूँ।जिन लोगों की बातों से मेरे अंदर ऊर्जा आती है वो हैं - पहले तो मेरे पतिदेव फिर डॉ अमित मोहन,रोली,मनिषा,नीमा,रागिनी दी,रमेन्द्र जी और रंजीता।इन सब लोगों ने कभी ना कभी कोई ऐसी बात की है जिससे मुझमें हिम्मत आ जाती है।
अब वह प्रश्न जो आज मेरी दोस्त बब्बी ने पूछा उसने मुझसे पूछा कि, “ क्या तुम्हारी बिमारी का बच्चों पर प्रभाव नहीं पड़ता?”
किसी बच्चे की माँ या पिता कोई भी लम्बी बिमारी से ग्रसित हो तो बच्चों पर पूर्णतया प्रभाव पड़ता है।मेरी अस्वस्थता के कारण ना जाने कितनी बार बच्चों का जन्मदिन भी नहीं मना।और आद्या कुची के खानपान पर भी असर पड़ा।इतना ही नहीं इस बार तो आद्या की पढ़ाई पर भी असर पड़ रहा है।लखनऊ में मुझे कुछ भी होता तो जानकी,बउआ हाज़िर हो जाते थे लेकिन इस बार वो अकेली पड़ गई और मेरी तकलीफ़ देख रोने लगी।डर लग रहा है कि कहीं बोर्ड ख़राब ना हो जाए।बार-बार अपने पापा से मेरी रिपोर्ट में क्या आया,आगे क्या होगा सब पूछती है और ब्रजेश उसके डर को ख़त्म करने की पूरी कोशिश करते हैं।आद्या की मानसिक अवस्था को मैं अच्छे से समझ सकती हूँ, मैं भी कभी उसी स्थिति से गुजरी हूँ।ख़ैर पूरी कोशिश करूँगी कि मेरे कारण आद्या का भविष्य ना ख़राब हो।अंत में इतना ही लिखूँगी कि माँ-बाप की बिमारी का असर बच्चों पर पूरी तरह से पड़ता है इसलिए अपनी will power को कमजोर ना पड़ने दें।
Bahut hi khoob likha hai aapne. aapki dost ka ek aur jawab hai mere pass . Baccho par asar jarur padta hoga lekin wo abhi se strong ban gaye hai har us paristhiti ke liye jo life me aane wali hai.
ReplyDelete🙏
Deleteइस लेख ने अंतर्मन को झझ कोर कर रखदिया और जीवन के यथार्थ धरातल पर लाकर पटक दिया
ReplyDeleteमेरी हिम्मती दोस्त जितना तुम में हिम्मत है उतना ही तुम्हारी लेखनी में
बिल्कुल हम दोनों ने अपनी अपनी मम्मी की बिमारी को बहुत ही करीब से देखा है,तो मुझे पता है कि बच्चों पर बहुत असर पड़ता है
ReplyDeletePareshaniyan pahli nazar ki pareshani hoti hai lekin wo bahut kuchh sikhati bhi hai, aur wo seekh anubhav ke heere hote hai. Isliye inhe dosti ke bhaav ke saath hi nipatana chaihie.
ReplyDeleteRahi manwa dukh ki chinta kyon satati hai, dukh to apna saathi hai, ko gungunao.
Nakratmakta mein vyakti gunguna sakta hai. 💃💃💃