हवाई यात्रा
मैं और मेरे द्वारा किए गए महान कार्य।सामान्यत: मुझसे महान कर्म हो ही जाते हैं, मैं महान जो हूँ।कभी दीवान के अंदर गिर कर आधा बंद हो जाती हूँ, कभी दुकान में शीशे वाले दरवाज़े से इतना तेज टकरा जाती हूँ कि दुकान के निचले तल के कर्मचारी हड़बड़ाते हुए ऊपर आकर पूछ लेते हैं कि “ क्या हुआ,ज़्यादा लगी तो नही ?”और कभी उल्टा हेलमेट लगाकर आद्या को डांस एकेडमी तक छोड़ आती हूँ।
महान कार्य ज्यादातर विवाहोपरांत ही किया है क्योंकि विवाह से पूर्व बाहर बहुत ही कम निकलती थी।बाहरी दुनिया से मैं पूर्णतया अनभिज्ञ थी, यह कहना ग़लत ना होगा।किसी अनजान से मिलना-जुलना होता ही नहीं था और ना ही मैंने कभी कोई बाहरी काम किया था तो गड़बड़ी होने की संभावना ही नहीं।
लगता है घर का छोटा बच्चा उम्र के किसी भी पड़ाव पर हो वो कभी बड़ा नहीं होता।बेवक़ूफ़ी भरी हरकतें उससे होती ही रहती हैं।मेरे साथ तो ऐसा ही होता है ।इस बार तो मैंने कुछ ज़्यादा ही महान कार्य कर दिया।
हुआ यूँ कि, कुची को दिल्ली विश्वविद्यालय में अपने document verify कराने जाना था और कुची लखनऊ में थे। तो मेरा राजधानी का टिकट कटा दिया गया।मुझे कानपुर तक ट्रेन से और फिर उसके बाद एक परिचित के ड्राइवर के साथ कार द्वारा लखनऊ तक।ब्रजेश ने मुझसे पूछा, “चली जाओगी ना ?” मैंने पूर्ण विश्वास से कहा,“ बिल्कुल।” बोल तो दिया था ‘बिल्कुल’ लेकिन अनजान शहर पहुँचकर अगर वो परिचित प्लेटफ़ॉर्म पर ना मिले तो मैं क्या करूँगी, इसका डर मुझे सता रहा था। ऐसा नहीं है कि मैं अकेली कहीं आई गई नहीं हूँ।धनबाद और लखनऊ अकेले आई - गई हूँ। ये दोनों शहर मुझे अपने लगते हैं।कभी कोई दिक्कत आई तो मुझे अपने पर विश्वास है कि मैं उससे निपट लूँगी ।लेकिन कानपुर वो तो एकदम अनजाना शहर और उसपर एकदम सुबह- सुबह पहुँचना, ये सोचकर डर लग रहा था।भगवान ने मेरी ये परेशानी समझ ली और अचानक दिल्ली विश्वविद्यालय खुलने का आदेश हो गया और document verify कराने की अंतिम तारीख़ भी जल्दी की दे दी गई।रेल टिकट रद्द कराकर हवाई जहाज़ का टिकट करा दिया गया।अब मैं निश्चिंत थी अपने शहर लखनऊ जो जा रही थी।नियत समय पर हवाई अड्डे के लिए निकल गई।रास्ते भर ब्रजेश मुझे समझाते जा रहे थे कि मुझे क्या-क्या करना है और मैं आत्मविश्वास से भरी बोल रही थी “परेशान मत होइए अगर कोई दिक़्क़त होगी तो मैं पूछ लूँगी।” लेकिन जैसे-जैसे हवाई अड्डा क़रीब आ रहा था मुझे किसी अनहोनी की आशंका होने लगी।ख़ैर लखनऊ और दिल्ली तो जाना ही था । मुझे हवाई अड्डे पर उतारकर ब्रजेश यह निर्देश देते हुए कि “बैठ जाना तो बता देना” वापिस हो लिए।सब औपचारिकता पूर्ण करके मैं आराम से बैठ गई।फ़्लाइट आने पर अपनी सीट पर बैठने के उपरांत ब्रजेश को सूचित भी कर दिया। अब बादलों के बीच उड़ते हुए आँख बंद करके कुची के बारे में सोचने लगी कि मालूम नहीं कि अनजान शहर में कैसे रहेगा, क्या खाएगा, किन- किन परेशानियों का सामना करना पड़ेगा और भी पता नहीं क्या - क्या ? इसी उधेड़बुन में कब लखनऊ पहुँच गई मालूम ही नहीं पड़ा।तभी विमान परिचारिका ने सीट बेल्ट खोलने की उद्घोषणा की। मैं सीट बेल्ट खोलने लगी लेकिन सीट बेल्ट तो खुलने का नाम ही नहीं ले रही थी।अब मैं परेशान, बग़ल की सीट पर एक लड़की बैठी थी मैंने उससे बोला कि मेरी सीट बेल्ट नहीं खुल रही वह भी सीट बेल्ट खोलने की कोशिश करने लगी लेकिन सीट बेल्ट तो खुलने का नाम ही नहीं ले रही थी और मैं परेशान कि मैं निकलूँगी कैसे,क्या सीट बेल्ट कमर से नीचे खिसकाकर? विमान परिचारिका से मदद का ख़्याल दिमाग़ में आया ही नही🤦♀️। ख़ैर उस लड़की के प्रयत्न के बाद बेल्ट खुल गई। विमान से बाहर आते वक्त लगा कि यही अनहोनी होनी थी । अब मैं सामान काउंटर पर अपना बैग लेने के लिए खड़ी हो गई।दिल अभी भी शाताब्दी ट्रेन की गति से धड़क रहा था।
मैं अपना बैग लेकर निकास द्वार से बाहर निकली तो देखा कि कुछ पुलिस कर्मचारी अपने किसी अधिकारी का स्वागत करने के लिए गुलदस्ता लेकर खड़े हैं। मैं 15-20 मिनट तक बाहर कुची का इंतज़ार कर रही थी और बार-बार उन कर्मचारियों की ओर भी देख रही थी कि इनके अधिकारी अभी तक बाहर नहीं निकले जबकि राँची का विमान तो आ चुका।
कुची अपने दोस्त के साथ मुझे लेने आ चुका था और मैं कार में बैठकर घर की ओर निकल चुकी थी। हवाई अड्डे से बाहर निकल रही थी कि कुछ पुलिस वालों ने गाड़ी रुकवा दी।बोले डिग्गी खोलिए चेक करना है। डिग्गी खोल दी गई मेरा बैग उसी के अंदर था।उधर डिग्गी चेक हो ही रही थी और इधर कुछ पुलिस वाले मेरे पास आए और बोले पर्स दिखाइए।मैंने पर्स खोल कर उनके सामने कर दिया कि मोबाइल बज उठा, देखा तो नम्बर था । नाम से फ़ोन आता है तभी मैं उठाती हूँ लेकिन उस दिन मैंने उठा लिया।उधर से एक पुरुष की आवाज़ आयी “ उर्वशी मिश्रा” मैंने कहा नहीं, तो बोले “ जया मिश्रा ? आप इंडिगो फ़्लाइट से राँची से आईं हैं ?”मैंने कहा, जी। तो उन्होंने कहा आप किसी और का बैग लेकर चली गईं हैं, आप अपना बैग ले जाइए और वो बैग वापिस कर जाइए।” और उधर पुलिस वाले डिग्गी में रखे बैग को खोलने का आदेश दे रहे थे जब मैंने उन लोगों को बताया कि बैग बदल गया है तो वो हँसने लगे।वो हँस रहे थे और मुझे लग रहा था कि कहीं इस बैग में ड्रग्स तो नहीं ?
मैं बैग निकालकर बाहरी द्वार पर खड़ी थी कि मेरी नज़र उन पुलिस कर्मचारियों पर पड़ गई जो अपने अधिकारी का अभी तक इंतज़ार कर रहे थे।मेरे मन में तुरंत आया कि अरे इनके अधिकारी कहाँ रह गए अभी तक आए नहीं?और फिर अपने बैग का इंतज़ार करने लगी।थोड़ी देर में एक महिला मेरा बैग लेकर आती दिखी।मेरे क़रीब आकर उसने मुझसे बैग लेकर अपने साथ आए ऊँचे क़द-काठी वाले पुरुष को दे दिया (जो मुझे रोष भरी निंगाहों से घूर रहे थे ) और मेरा बैग मुझे देने की अनुमति माँगी।उन्होंने रोष भरी निगाहों से मुझे देखते हुए बैग देने की अनुमति दे दी । मेरा बैग मेरे हवाले हो रहा था और उनका स्वागत उन पुलिस कर्मचारियों द्वारा।मैंने एक आईपीएस अधिकारी का बैग उठा लिया था 🤦♀️।
कार में बैठने के उपरांत कुची कहा “ महान हो तुम,जो ना कर दो।” ब्रजेश को बताया तो बोले, “हे भगवान ! तुम जो ना करो कम है।” एक्स्पर्ट कमेंट अभी बाक़ी थी। मैंने जब यह घटना जानकी और अपने हमजोली (आनंद)को बताया तो दोनों खूब हँसे और बोले अरे आप भी सीबीआई अधिकारी की वाइफ़ हैं।तभी जानकी बोली “अगर आप उनका बैग लेकर घर आ गईं होतीं तो ?” तब मिस्टर आनंद सिंह ने बिष्ट तुरंत कहा,“ फिर आप दोनों में प्यार हो जाता।” मैंने और जानकी ने पूछा,“ क्यों ?” तो बोले “पिक्चर में ऐसा ही दिखाते है ।” 😀
Yeh ek manviya bhool thi jo ho gayee anjane.mein, isliye iaka pchhtawa karna uchit nahi hai.
ReplyDeleteJo hua achchha hi hua, enjoy.
Kahani ka ek plot to mil hi gaya
😊😊
ReplyDeleteBahut khoob aunty😂
ReplyDeleteYadgar safar😊samne wale ke lie bhi 😂
ReplyDelete😀
DeleteAisi he romanchak yaatra karti raho😆
ReplyDeleteकुछ ज़्यादा ही रोमांचक हो गई
Deleteतुम बचपन से महान थी । ज्ञान विवाह के बाद हुआ ।
ReplyDelete😀
DeleteDon't lie, you were eyeing on that tall, handsome officer. Sudhar jao.
ReplyDelete😀
DeleteWahhhh mahan karya kiya aapne par usase mahan likha hai , sundar shabdon me sajeev chitran ♥️
ReplyDeleteAunty meri best!😂🫶🏻such beautifully written descriptive tho!
ReplyDeleteसही कहा
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