मिठाई

      भारतीय समाज में कोई शुभ काम हो,ख़ुशी का माहौल हो,त्यौहार हो बिना मीठे के अधूरा होता है।मीठे से अर्थ यहाँ मिठाई से है ना कि चॉकलेट से।मिठाई का स्थान चॉकलेट कभी  नहीं ले सकती। सामान्यत: मिठाइयाँ सभी को पसंद ही होती हैं, किसी को कम किसी को ज़्यादा।सब खाने के उपरांत ही मीठा खाते हैं लेकिन जानकी तो खाने के बीच में खाती है।ऐसा नहीं कि उसे मीठा पसंद नहीं बस वो जिह्नवा पर नमकीन स्वाद अंतिम में रखना चाहती है।खाने के काफ़ी शौक़ीन हैं जानकी और आनंद सिंह बिष्ट।वो दोनों ही नहीं हम- दोनों भी खाने के शौक़ीन हैं लेकिन मेरे पतिदेव को मिर्च -मसाला पसंद नहीं और मैं?अपनी पसंद के बारे में क्या लिखूँ? बस यही कहूँगी “जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिए” ।😌

        मुझे मिठाई में गुलाब जामुन,काला जाम,मोतीचूर का लड्डू, और बच्चे वाली मिठाई बहुत पसंद है। गुलाब जामुन और काला जाम अब मेरी क़िस्मत में नहीं।बच्चे वाली मिठाई का नाम मुझे कभी याद नहीं रहता।पहली बार पापा ने जगराम की दुकान में खिलाया था। छोटी थी और पहली बार खोए की मिठाई के अंदर छेने का छोटा रसगुल्ला देखा था तो बस उसी समय उस मिठाई का नाम मैंने बच्चे वाली मिठाई रख दिया था।इस नामकरण के बाद पापा-मम्मी भी उसे बच्चे वाली मिठाई कहने लगे थे। आज भी उसका नाम नहीं याद आ रहा।ये सारी मिठाइयाँ  जानकी और प्रणव (जानकी के सुपुत्र) को भी बहुत पसंद हैं।

          जब तक इलाहाबाद रही जगराम के दुकान की ही मिठाई खाई। ख़ासतौर पर मोतीचूर का लड्डू।ज़बर्दस्त स्वाद था उन लड्डुओं का। वैसा लड्डू ना धनबाद में मिला और ना दिल्ली में।लड्डू ही नहीं मुझे तो इन दोनों शहरों की मिठाई ही कम पसंद आई। लखनऊ आने पर जब पहली बार नीलकंठ का लड्डू खाया तो लगा बस इससे स्वादिष्ट लड्डू हो ही नहीं सकता। कुची (मेरा सुपुत्र) जो मीठा खाता ही नहीं था उसने भी लड्डू खाना शुरु कर दिया।

   किसी भी मिठाई की दुकान पर मोतीचूर का लड्डू देख मुस्कराहट आ ही जाती है।इतना कुछ लिख दिया मोतीचूर पर तो घटना भी मोती चूर के लड्डू से ही जुड़ी है। हुआ यूँ था मोहल्ले में वर्मा आंटी के बेटे का चयन उप प्रभागीय न्यायाधीश के पद पर हुआ।अंतिम प्रयास में वो सफल हुआ था तो परिवार और हितैषियों में खु़शी की लहर दौड़ गई थी। सालों बाद मनमाफिक परिणाम आया था तो आंटी ने मिठाई बँटवाने का सोचा और सबसे पहले मेरे घर आईं और मुझे मिठाई का एक छोटा डिब्बा देकर यह कहते हुए अन्य जगह मिठाई बाँटने निकल गईं कि,“अब बाबू  के लिए लड़की तुम पसंद करना।” मैंने हाँ में सिर हिलाया और काम में लग गई कि थोड़ी देर बाद जानकी आई और बोली (हँसते हुए) वर्मा आंटी आईं थीं मिठाई लेकर। मैंने कहा,”हाँ,तो इसमें हँसने वाली कौन सी बात है?” बोली एक किलो का डिब्बा।मैंने आश्चर्य चकित होकर पूछा, “क्या तुम्हारे यहाँ एक किलो नीलकंठ का लड्डू दीं?” जानकी थोड़ा झल्लाकर बोली,”हाँ हम तो उनके ख़ास है ना जो एक किलो देंगी।वो (आंटी ) तो एक किलो का डिब्बा लेकर मेरे घर आईं थीं और डिब्बा खोलकर मुझसे बोलीं इसमें से लड्डू उठा लो।” मैंने तुरंत कहा, “अरे ! ये क्या तरीक़ा है ? प्लास्टिक के पाउच में दो-दो लड्डू रखकर बाँट देंती।” जानकी बोली, “क्या बात कर रही हैं?दो लड्डू ज़्यादा ना हो जाता।” मैंने कहा मतलब? तो बोली, आंटीं मेरे सामने डिब्बा खोलकर बोलीं कि,”बाबू का सेलेक्शन हो गया लो एक लड्डू उठा लो।” अभी मैं इस घटना के बारे में सोचकर हँस ही रही थी कि जानकी बोली, “अगर मैं दो लड्डू उठा लेती तब आंटी क्या करतीं।”😀

        आज भी इस घटना को सोचकर हँसी आ ही जाती है कि कोई आपके सामने आपकी पसंदीदा मिठाई का डिब्बा लेकर खड़ा हो और आपसे बोले एक ही लेना।😀


  

         

     

        

Comments

  1. उस खोये के अंदर छेने के लड्डू वाली मिठाई का नाम है 'खीर कदम'.

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  2. 😂😂😂... ऐसा लग रहा जैसे मेरे सामने ही आप और जानकी आंटी दोनो लोग एक ये बात कर रहे हों... आप दोनो के ऐसे बहुत से किस्से सुने हैं ना...

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  3. Mithai ke.utsah ko lambi prateeksha ne kam kar diya hoga kuchh din baad shayad wo bhi n milta. Chalo kisi ka to achchha hua. Janki ka swad magar pura n hua, shayad koi aur kahani ban ne wali ho

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  4. Mesmerizing. Mithai khane ki teevr icha ho gayi.

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  5. Katayi meethi kahani👌🥰
    Btw amazingly written

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