पवित्र बंधन
इधर नीलिमा कुछ दिनों से परेशान थी ये उसकी शक्ल और हाव-भाव देखकर कोई भी बता सकता था । स्वयं से ही बार-बार प्रश्न करती थी कि क्या कोई महिला पचास वर्ष की उम्र में विवाह नहीं कर सकती ? फिर खुद ही उत्तर भी देती कि जब पुरुष पचास वर्ष की उम्र में विवाह कर सकता है तो महिला क्यों नहीं ?अपने मनमुताबिक जवाब की आशा में उसने अपने पति सुधीर से पूछ ही लिया कि, “ अगर कोई पचास वर्षीय महिला विवाह करना चाहे तो ?” सुधीर ने अख़बार पढ़ते-पढ़ते बेफ़िक्री से जवाब दिया, “ किस महिला को विवाह करना है मैं तैयार हूँ ।” कभी तो ढ़ंग से जवाब दे दिया करिए , खिन्न स्वर में यह बोलते हुए नीलिमा सुधीर के पास से चली गई ।सुधीर समझ गया कि किसी ख़ास को लेकर नीलिमा परेशान है । सुधीर ने अख़बार को एक ओर सरकाया (जबकि सुबह-सुबह चाय के साथ अख़बार को दीमक की तरह चाटने के बाद ही उठता था सुधीर ) और नीलिमा के पास जाकर पूछा किसको लेकर परेशान हो और किसको इस उम्र में विवाह करना है ? नीलिमा ने एकदम शांत भाव से जवाब दिया ,“ मालूम नहीं उसे करना है या नहीं लेकिन मैं चाहती हूँ कि उसका विवाह हो जाए। अरे ! किसका विवाह , बताओगी ? (सुधीर ने थोड़ा झल्लाते हुए पूछा) सरिता का , और किसका नीलिमा ने जवाब दिया ।तुम्हारा दिमाग़ ठिकाने पर है ? एक तो वो widow , ऊपर से उम्र और अब तो बेटा भी बड़ा हो गया है । कौन करेगा उससे विवाह ? और सरिता विवाह करना भी चाहती है या नहीं तुम्हें यह भी नहीं मालूम। फिर तुम्हारे दिमाग़ में यह फ़ितूर कहाँ से आ गया ? सुधीर ने नीलिमा से पूछा ।फालतू दिमाग़ ना लगाओ , मेरा टिफ़िन लगाओ आज ऑफिस जल्दी जाना है ।यह कहकर सुधीर चला गया ।
लेकिन नीलिमा, उसके दिमाग़ से यह फ़ितूर कहाँ उतरने वाला था ।अपनी दैनिक दिनचर्या निपटाकर आराम कुर्सी पर बैठकर धूप सेंकते हुए अपने और सरिता के युवावस्था के दिनों में खो गई थी। मन ही मन गुनगुना भी रही थी “ कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन ———-।”
सरिता और नीलिमा चचेरी बहनें थी । सरिता नीलिमा से दो वर्ष बड़ी थी और उसका एक हाथ हल्का पोलियो ग्रस्त था ।दोनों बहनों की दोस्ती के खूब चर्चे थे। जबकि स्वभाव से दोनों एकदम विपरीत। सरिता में दयाभाव कूट-कूटकर भरा था । किसी गरीब को ठंड में ठिठुरते देखती तो अपना ही स्वेटर दे देती थी, गर्मी में रिक्शे वाले को बिना गुड़-पानी पिलाए जाने नहीं देती थी। और मेहनती तो इतनी कि लोग उसका उदाहरण देते नहीं थकते थे। ऐसा नहीं था कि नीलिमा में दयाभाव नहीं था लेकिन वो व्यवहारिक भी थी और मेहनती तो बिल्कुल नहीं थी। फिर भी दोनों बहनों में दाँत-काटी दोस्ती थी। दिन भर फ़ुसुर- फ़ुसुर ना जाने क्या बतियाती थीं । इन दोनों के लिए तो रात भी कम थी बात करने के लिए । गर्मी में छत पर खटिया लगती थी सबकी । लेकिन ये दोनों तो एक ही खटिया पर सोती थीं और ना जाने क्या बात करती थीं ।कड़कड़ाती ठंड में एक रज़ाई में मुँह ढककर कच्चे अमरूद में नमक - मिर्च लगाकर खाते- खाते ना जाने कितनी बातें करती थीं । और दादी ग़ुस्से में चिल्लाती रहती थीं , “ना खुद सोवैं और ना दूसरे क सोवैं देंय । ए बतक्कड़ मुहँझौसी अहैं जिनकै रतियौ में बतिया ख़तम नाय होत ।”
दोनों बहनें विवाह योग्य हो गईं थीं । सरिता के मम्मी-पापा ज़्यादा परेशान थे कि मालूम नहीं उनकी बेटी का विवाह उचित वर से होगा या नहीं ।इसी क्रम में वे सरिता को हाथ के उपचार के लिए फिजियोथेरेपिस्ट के पास भेजने लगे थे। सरिता ने एक दिन बातचीत के दौरान नीलिमा से कहा गौतम काफ़ी अच्छे इंसान हैं । नीलिमा ने आश्चर्य से पूछा , कौन गौतम ? अरे वही जो मेरी थेरेपी कराते हैं, सरिता में जवाब दिया। अब तो सरिता की हर बात गौतम से संबंधित होती थी। जैसे,गौतम विवाहित हैं लेकिन गौना नहीं हुआ है , आज गौतम ने इस रंग की शर्ट पहनी थी , आज गौतम ने मेरे लिए समोसा मंगाया था, गौतम ने आज अपनी पत्नी को पत्र लिखा और भी ना जाने क्या-क्या। गौतम की इतनी बातें सरिता करती थी की नीलिमा अब गौतम से अपरिचित ना रह गई थी। नीलिमा समझ गई कि सरिता को गौतम बहुत पसंद हैं । लेकिन ना सरिता ने कभी नीलिमा से यह कहा कि उसे गौतम पसंद है और ना नीलिमा ने सरिता से पूछा । शायद इसका कारण गौतम का विवाहित होना था। कुछ महीनों बाद सरिता का विवाह तय हो गया था। घर की पहली शादी थी तो सब उत्साहित भी बहुत थे। अंतत: वह दिन भी आ गया जब सरिता विदा होकर ससुराल चली गई ।विदाई के वक्त दोनों बहनों का रोना सबके हृदय को चीर दे रहा था ।
कुछ महीनों बाद सरिता घर आई थी उसके चेहरे की रंगत से सबको मालूम हो गया था कि वह बहुत खुश है। कुछ साल बाद नीलिमा का भी विवाह हो गया। चिट्ठियों के आदान-प्रदान से दोनों बहनें आपस में जुड़ी हुई थीं। धीरे - धीरे चिट्ठियाँ का स्थान फ़ोन ने ले लिया।
कितनी मनहूस सुबह थी जब नीलिमा को सरिता के पति के देहान्त की सूचना मिली थी। नीलिमा की रातों की नींद उड़ गई थी। सोते - सोते चिल्लाने लगती थी “कैसे जिएगी सरिता वो तो पागल हो जाएगी ।” वाक़ई सरिता ने अपना मानसिक संतुलन खो दिया था। ना उसे अपना ध्यान था और ना ही अपने बेटे का। ससुराल वाले भी उसे वापिस छोड़ गए थे।सरिता के माँ-बाप के समक्ष यक्ष प्रश्न यह था कि अब सरिता की जीविका कैसे चलेगी ? सरिता ने तो अपने को घर में क़ैद कर लिया था। बहुत समझाने के बाद स्कूल में पढ़ाने को राज़ी हुई थी ।
इधर नीलिमा भी अपनी ज़िन्दगी में आगे बढ़ गई थी।और उसकी दोस्ती गौतम से फ़ेसबुक के माध्यम से हो चुकी थी । फ़ोन नम्बर का आदान-प्रदान भी हो चुका था। सरिता की बातों के माध्यम से दोनों को कभी लगा ही नहीं कि वो आपस में कभी मिले ही नहीं हैं ।दोनों में गाहे- बगाहे बातचीत हो ज़ाया करती थी।बातचीत के क्रम में ही गौतम ने नीलिमा को बताया था कि कैंसर से उनकी पत्नी की मृत्यु हो चुकी है ।
अचानक एक शाम बुआ का फ़ोन आया नीलिमा के पास। इस कोरोना काल में किसी का अचानक फ़ोन आने से अनहोनी की आशंका से दिल दहल ही जाता था। नीलिमा ने बहुत डरते हुए हुए फ़ोन उठाया । सरिता का एक्सीडेंट हो गया नीलिमा के फ़ोन उठाते ही बुआ बोलीं। अब तो नीलिमा ने भगवान को कोसना शुरू कर दिया कि “कितने निर्दयी हैं भगवान । जो जितना ही उन्हें याद करता है , ग़रीबों की मदद करता है उसी की बार-बार परीक्षा लेते हैं।” नीलिमा ने सरिता के एक्सीडेंट की सूचना गौतम को भी दे दी थी और गौतम ने सरिता से मिलने इच्छा ज़ाहिर की। तब नीलिमा ने गौतम से कहा,” मुझे आने में एक दो दिन लग जाएगा आप तब तक मिल आइए। आप तो एकदम पास हैं उसके।” गौतम ने अकेले जाने से इंकार कर दिया था। बोला, “आप के साथ ही चलूँगा।”
सरिता के पैर में गंभीर चोट आई थी। नीलिमा बेचैन थी सरिता से मिलने के लिए। घर के सब लोग जानते थे कि नीलिमा से मिलकर सरिता में हिम्मत आ जाएगी। नीलिमा पहुँच गई थी सरिता से मिलने। हॉस्पिटल में जैसे- जैसे सरिता के कमरे की ओर बढ़ रही थी उसके दिल की धड़कनें तेज होती जा रही थी , दिमाग सुन्न हो रहा था समझ नहीं पा रही थी कैसे सँभालेगी सरिता को ? लेकिन नीलिमा अपने मनोभावों को छिपाने में निपुण थी। आँसू भी बिना उसकी इजाज़त टपकते ना थे । धड़कते दिल से दरवाज़ा खोला तो सरिता माँ को पकड़कर रो रही थी। नीलिमा ने माहौल हल्का करने के लिए तुरंत हँसते हुए बोला, “क्या सरिता बुलाना था तो ऐसे ही बुला लेती पैर तोड़वाने की क्या ज़रूरत थी।” नीलिमा तुम ! सरिता ने आश्चर्य से सिसकते हुए पूछा । हाँ मैं,और अब रोना बंद । अगर रोने से पैर ठीक हो तो रो वरना रोना बंद करो। नीलिमा ने प्यार भरी झिड़की दी थी।हाल-चाल के बाद नीलिमा ने सरिता से कहा “जानती हो तुमसे कौन मिलने आया है ?” सरिता ने दुखी स्वर में कहा, “ मैं बिस्तर में हूँ तो मैं क्या जानूँ ? सुधीर होंगे और कौन हो सकता है ?” सुधीर नहीं, कोई और है बुलाऊँ ? नीलिमा ने पूछा और बिना सरिता का जवाब सुने उसने दरवाज़ा खोलकर कहा आ जाइए । गौतम को अचानक इतने सालों बाद सामने देखकर सकपका गई थी सरिता ।तभी सरिता की ओर एक पैकेट बढ़ाते हुए गौतम बोले , “लो , समोसे खाओ तुम्हें बहुत पसंद है ना।” सकुचाते-सकुचाते पैकेट लेते हुए सरिता ने कहा , “ऑपरेशन हुआ है इसकी क्या ज़रूरत थी ?” “अरे !पैर का ऑपरेशन हुआ है पेट का नहीं, खाओ और जल्दी से ठीक हो जाओ ” गौतम ने जवाब दिया। कुछ देर रुकने के बाद गौतम फिर आने का वादा कर चले गए । उनके जाते ही सरिता ने थोड़ा गुस्से में नीलिमा से पूछा “ ये कहाँ मिल गए तुम्हें और इनको लाने की क्या ज़रूरत थी ?” नीलिमा ने कहा , “अगर उनसे मिलकर ना अच्छा लगा हो तो बता दो । मैं मना कर दूँगी कि आइंदा तुमसे ना मिलें।” "नहीं ,ऐसी बात नहीं है " सरिता ने जवाब दिया था।
कुछ दिनों उपरांत सरिता हॉस्पिटल से घर आ गई थी और अब उसकी फिजियोथेरेपी होनी थी। नीलिमा ने तुरंत गौतम का ही नाम लिया था । घर वालों को भी गौतम से आपत्ति ना थी । सब इंतज़ाम करके नीलिमा वापिस अपने शहर आ गई थी ।
गौतम की थेरेपी से तेज़ी से सुधार हो रहा था।सरिता की बातों में गौतम का ज़िक्र भी बढ़ गया था, और उसकी बातों में पहली वाली खनक लौट रही थी ।सरिता ने ही नीलिमा को बताया था कि पत्नी के देहांत के बाद गौतम को बहुत अकेलापन लगता है। नीलिमा ने तुरंत पलटकर पूछ लिया और तुम्हें ? ये सुनते ही सरिता ने तुरंत फ़ोन काट दिया ।
सरिता की इस हरकत ने यह तो साबित कर दिया था कि उसे गौतम का संग पसंद है लेकिन समाज के डर से बोल नहीं पा रही थी । नीलिमा किसी भी हालत में सरिता को खुश देखना चाहती थी । इसलिए वो चाह रही थी कि सरिता और गौतम का विवाह हो जाए ।
क्या सरिता और गौतम विवाह के लिए तैयार होंगे और उनके बच्चे और घर वाले ? कुछ समझ नहीं आ रहा था नीलिमा को। इसी उहापोह में नीलिमा ने सरिता के बेटे और गौतम के बेटे को अपने शहर घूमने बुलाया था और दोनों से एक दिन पूछ लिया कि अगर गौतम और सरिता का विवाह कर दिया जाए तो ? दोनों को इस प्रश्न की उम्मीद नहीं थी तो थोड़ा विचलित हो गए थे। तीनों के बीच सन्नाटा छा गया था तभी सरिता का बेटा बोल पड़ा “ मुझे तो कोई परेशानी नहीं इस विवाह से, बस मैं तो मम्मी को हँसते हुए देखना चाहता हूँ ।” गौतम के बेटे से रुबरू होते हुए नीलिमा ने पूछा और तुम ? “हाँ आंटी मैं भी तैयार हूँ क्योंकि मैंने पापा को अकेलेपन से जूझते देखा है ” गौतम के बेटे ने जवाब दिया। नीलिमा ने चहकते हुए कहा, “कौन कहता है कि आजकल के बच्चे माँ- बाप के बारे में नहीं सोचते।” यह ख़ुशख़बरी वह सुधीर को देने के लिए बेचैन हो उठी थी।ऑफिस से आने के उपरांत सुधीर अपने स्वागत से समझ गया था कि आज नीलिमा कुछ ज़्यादा ही ख़ुश है। “क्या बात है आज इतने दिनों बाद बड़ी खुश नज़र आ रही हो । सरिता ने विवाह के लिए हाँ कह दिया क्या ?” सुधीर ने पूछा। “अरे नहीं, उससे तो अभी पूछा ही नहीं ” नीलिमा ने जवाब दिया। फिर इस ख़ुशी का कारण सुधीर ने पूछा । “गौतम और सरिता दोनों के बच्चे इस विवाह के लिए तैयार हैं ” नीलिमा ने चहकते हुए बताया। “ जो फ़ितूर चढ़ जाता है उसको करके ही दम लेती हो ” सुधीर ने कपड़े बदलते हुए कहा।” अब आगे क्या करने वाली हो ?” सुधीर ने मुस्कुराते हुए नीलिमा से पूछा । “ वही तो समझ नहीं पा रही ” नीलिमा ने जवाब दिया ।
अब समस्या यह थी कि क्या गौतम और सरिता विवाह के लिए तैयार होंगे ? क्योंकि सरिता के पति के देहांत के बाद उसके पुनर्विवाह की बात करने पर वह आग बबूला हो जाती थी। कैसे पूछा जाए सरिता और गौतम से ? नीलिमा की रातों की नींद उड़ गई थी । “ इतनी परेशान मत हो चलो तुम्हारे घर पर दोनों से एक साथ बात कर लेते हैं मैं भी साथ रहूँगा तुम्हारे ” सुधीर ने नीलिमा से कहा।नीलिमा को हिम्मत मिल गई थी।
सुधीर और नीलिमा को अचानक घर आया देखकर सरिता अचंभित रह गई थी। चाय नाश्ते के उपरांत सुधीर ही ने कहा, "सरिता आज रात का खाना बाहर खाने चलेंगे गौतम को भी बुला लेना।” सरिता सुधीर की बात टाल नहीं पाती थी वरना उसे तो बाहर के खाने से सख़्त नफ़रत थी।
चारों नियत समय पर होटल पहुँच गए थे। काफ़ी देर इधर उधर की बातें चलती रहीं।नीलिमा डर से हिम्मत ही नहीं कर पा रही थी कि सरिता से विवाह के संदर्भ में पूछे। उसने सुधीर को इशारा किया वो पूछे। सुधीर सीधी बात करने वाला इंसान था तो उसने अचानक गौतम और सरिता से पूछ लिया आप दोनों शादी क्यों नहीं कर लेते ? नीलिमा के तो हाथ- पैर ठंडे हो गए थे कि मालूम नहीं सरिता क्या कर दे अभी ? लेकिन सरिता और गौतम तो मुस्कुरा रहे थे जैसे इस प्रश्न के लिए पहले से तैयार थे। “क्या विवाह के बिना हम दोनों संग नहीं रह सकते हैं ” गौतम ने पूछा। सरिता ने भी यही प्रश्न मुस्कुराते हुए दोहराया । “मुझे मालूम है नीलू तुम मुझे लेकर बहुत परे़शान रहती हो लेकिन मैं अपने पति का स्थान किसी और को कभी नहीं दे सकती ।हाँ, गौतम जी का साथ मुझे और मेरा साथ गौतम जी को अच्छा लगता है इसलिए हम - दोनों दोस्ती के पवित्र बंधन में ही बंधे रहना चाहते हैं ।” सरिता पहली बार खुलकर गौतम से संबंधित कुछ बोल रही थी । नीलिमा सरिता को खुश देखकर उसकी ख़ुशी में डूब जाना चाहती थी। और कुछ तो नहीं पूछना नीलू सरिता ने पूछा (सरिता जब बहुत खुश होती थी तो नीलिमा को नीलू ही बुलाती थी) ।नीलिमा ने मुस्कुराते हुए ना में सिर हिला दिया था ।
Chahat jo dosti ke bandhan mein simit ho gayee hai, wo kisi rishte se kam majboot nahi hoti. Kahani ka ant wakai nayapan liye hai, jo ki ek sukhad prayog prateet hota hai. Lekhika smwedansheel dikhti hai aur patro ke pawitra rishte ki seemaon ka dhyan rakha hai. Kushal lekhan ke liye bahut bahut pyar
ReplyDelete👌👌👌
ReplyDeleteवाकई चाहत में पाना ही मुकाम नहीं होता बल्कि एक दूसरे को समझना और सम्मान करना भी होता है
ReplyDeleteप्रभावशाली
ReplyDeleteबहुत प्रभावशाली लेखन, कहानी के अनअपेक्षित (और अक्सर प्रासंगिक) अंत के लिए बधाई👌👌
ReplyDelete🙏
DeleteKya ant kiya hai bhai wah , laga tha shadi kara liya par bada sundar aur pavitr
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