कभी तो नज़र मिलाओ

       प्रकृति के कण- कण में संगीत है।वायु के चलने पर पेड़ों के पत्तों का संगीत,  चिड़ियों के चहचहाने में संगीत ,नदी के बहने में संगीत, झरने - समुद्र सब में संगीत। हर जगह संगीत विद्यमान है शायद इसीलिए ईश्वर ने सबको संगीत प्रेमी बनाया है। हाँ, कैसा संगीत पसंद है वो अलग हो सकता है।मुझे तो लोकगीत, फ़िल्में गाने और शास्त्रीय सभी पसंद है (शास्त्रीय गानों से लगाव मेरे भतीजों के गायन क्षेत्र में आने के बाद हुआ)। पसंदीदा गाने सुनते वक्त मुझे और मेरे पतिदेव को उससे जुड़ी कोई घटना या इंसान (अगर है तो) याद ज़रूर आता है। 

  अदनान सामी का “ कभी तो नज़र मिलाओ” जब भी सुनती हूँ तो एक शर्म मिश्रित मुस्कान आ ही जाती है। आज भी ऐसा ही हुआ। आख़िर इस गाने से मीठी यादें जो जुड़ी हुई है।

    जून 2000 में अदनान सामी का “ कभी तो नज़र मिलाओ”  एल्बम आया था काफ़ी लोकप्रिय हुआ था।दावे से कह सकती हूँ हर संगीत प्रेमी के घर यह कैसेट रहा होगा।  मुझे धुँधला सा याद है टीवी पर गानों की रेटिंग से संबंधित कार्यक्रम आता था जिसमें यह पहले पायदान पर रहता था।भइया भी गानों का शौक़ीन था तो यह कैसेट वो ले आया। अब तो बस यही कैसेट चलता था, घर में किसी के ना रहने पर तेज आवाज़ में अपना पसंदीदा गाना सुनती थी। घर के नीचे गोपाल भइया (मकान मालिक के बेटे) भी यह कैसेट खूब चलाते थे, वो भी तेज आवाज़ में । जैसे ही मेरा पसंदीदा गाना आता था मैं तुरंत आँगन में दौड़कर जाती और बोलती थी “गोपाल भइया volume बढ़ाइए” और वो तुरंत बढ़ा देते थे। 

        इस दौरान मेरी सगाई हो गई, सगाई के बाद देवर अक्सर घर आते थे । एक दिन बात - बात में मैंने उनसे पूछा, “आपने अदनान सामी का गाना सुना है”  उन्होंने कहा. “नहीं” मैंने तुरंत आश्चर्यचकित होकर कहा,  “क्या? अभी तक आपने ये एल्बम ही नहीं सुना,? लीजिए ले जाइए , सुनिए बहुत अच्छे गाने हैं”। सच बताऊँ तो कैसेट लेते वक्त की उनकी मुस्कुराहट आज याद आ रही उस समय तो ध्यान ही नहीं दिए थे। कैसेट देने के दूसरे दिन ही फ़ोन किए और बोले ,” वाकई डॉली जी ‘कभी तो नज़र मिलाओ’ बहुत ही अच्छा है। 

    विवाहोपरांत जब ससुराल आई तो वहाँ सुबह - सुबह कबीर अमृतवाणी ज़रूर चलता था जब तक पापा (ससुर जी) ऑफिस नहीं चले जाते । पापा के ऑफिस जाने के बाद ही कैसेट बदला जाता था।  ऐसे ही एक दिन रमेश भइया (देवर) ने अदनान सामी का कैसेट लगा दिया। उस समय मैं काम में व्यस्त थी तो आवाज देकर बोले, “ अरे तितली (पापा और ब्रजेश की नामौजूदगी में ननद और देवर तितली ही बुलाते थे) जल्दी आओ तुम्हारा ‘कभी तो नज़र मिलाओ’ लगा दिए” । जब मैं वहाँ पहुँची तो सब (देवर,जेठ,ननद) मुझे देखकर आँखों में शरारत वाले भाव लिए मुस्कुरा रहे थे। चूँकि सब मुझे देखकर हँसते थे तो मुझे लगा सामान्य बात है और मैं भी मुस्कुरा कर अपने काम में लग गई लेकिन कान गानों में ही लगा था।

           कुछ महीनों बाद ब्रजेश मुझे धनबाद ले जाने के लिए आए   उस बार ये कुछ दिन के लिए रुके भी थे तो बस एक सुबह पापा के ऑफिस जाने के बाद रमेश भइया ने अदनान सामी का कैसेट लगा दिया ।  मैं किचन से चाय लेकर आ रही थी और गाना चल रहा था  “कभी तो नज़र मिलाओ कभी तो क़रीब आओ” जब मैंने सबके चेहरे देखे तो सबके चेहरे पर शरारत भरी मुस्कुराहट थी जैसे ही मैं इनकी ओर मुड़ी ये भी मुस्कुरा रहे थे तभी बड़े भइया बोले,”आज डॉली का गाना एकदम सही समय पर चला है” । उस समय मेरी समझ में आया कि जब - जब ये गाना चलता था तो सब मुझे देखकर मुस्कुराते क्यों थे। लेकिन सच्चाई तो ये थी ही नहीं, बड़े भइया की बात ख़त्म होते ही मैं तुरंत बोल पड़ी, “ अरे मुझे तो इस एल्बम का ‘लिफ़्ट करा दो’ गाना बहुत पसंद है”।लेकिन कोई मेरी बात मानने को तैयार नहीं था। हाँ, बड़े भइया इतना ही बोले कि “ये गाना तो मुझे भी पसंद है”।अब तो प्रश्नों की बौछार शुरु हो गई थी रमेश भइया की ओर से।जैसे - ये कैसेट आपने ब्रजेश के लिए नहीं भेजा था, कभी तो नज़र मिलाओ आपका पसंदीदा गाना नहीं है? मज़ेदार बात ये कि सबका जवाब मेरी ओर से ना था। इन सब घटनाओं के बीच मेरे पतिदेव केवल मुस्कुरा रहे थे। अब मुझे वाक़ई बहुत शर्म और गुस्सा आ रहा था   खुद पर कि मैंने किस समय, कौन सा कैसेट, किसको दे दिया🤦‍♀️।

     अब तो मुझे धनबाद पहुँचकर ये गाना ध्यान से सुनने की इच्छा थी ।धनबाद पहुँचकर गाना सुनने के बाद जो अनुभव किया उसको शब्दों में ढालना कठिन है।देवर जी को तो छेड़ने का टॉपिक मिल गया था बस “कभी तो नज़र मिलाओ” इतना गाकर मुस्कुरा देते थे।

     आज लिखने बैठी हूँ तो सच बता ही देती हूँ । उस एल्बम का ‘लिफ़्ट करा दो’ ही मेरा पसंदीदा गाना था और वो कैसेट रमेश भइया के लिए ही था मेरी इस स्वीकारोक्ति के बाद पक्का मेरे पतिदेव को झटका लगेगा और फिर बोलेंगे तुमसे यही उम्मीद थी।हाँ, धनबाद से जब आते थे तो ये गाना मन में ज़रूर चलता था “तुम आए तो आया मुझे याद ………।”

Comments

  1. Yeh gana jab suna to wakai kalpana ki duniya mein unchi udan bhara karta tha. Isse hi gali mein aaj chand nikla gana bhi achchha lagta tha. Mano ki chand tale kabhi apne chand se aukun bhara nazar milayenge meethi meethi baate bhi jisme pyar saath hoga yeh ahsas hi man ko gudguda deta tha. Magar middle class family ke beech ye saari bhawnayein sirf muskan bhar hi rah jaatee thee. Jimmedariyon ka ahsas bhi tha aur apno mein he bepard n ho jaye yeh seema thee. Ant me mere hisse mein kuchh n mila lekin unki muskan mein maine apni duniya samet di kyonki mera chand sharmila magar nishdaag aur bhola tha. Mujhe jo bhi mila usme mere bhagya ne mujhe ek behtareen naari sulabh man ka saathi diya. Main kul milakar khush tha....aaj bhi us bhole chehre ko yaad karta hoon to lagta hai ki apni duniya samet doon uske chehre par wahi geet ke bhav aa jaye....

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  2. There are so many interesting stories relating you.

    I have been listening for the last 14 years, but doesn't come to an end.

    Keep writing.

    Anand Singh Bisht, Lucknow

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  3. Amazing as well as Interesting bcoz I am also familiar with those people whose you mentioned above in story..very nice memories you shared of your life...You defined music well by giving a great memories👍

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  4. बहुत खूब मेरी प्यारी सी दोस्त
    तुम्हारी लेखनी बहुत अच्छी है
    इन यादों को संजोए रखना और ऐसे ही लिखते रहना

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