बचपन
होली और 14 नवम्बर जैसे - जैसे क़रीब आते हैं मैं बौराने लगती हूँ। होली में मन करता है सबकों रंग में डुबों दूँ और नवम्बर में तो बस दिमाग़ में ख़ुराफ़ात चलती रहती है । हर वक्त शैतानी करने का मन करता है ।
14 नवम्बर के दो दिन पहले से ही मन मचलने लगता है।फिर से उस बचपन को जीने की इच्छा जाग जाती है वैसे देखा जाए तो हम सब में एक बच्चा हमेशा जीवित रहता है बस ज़िम्मेदारियों के बोझ से हम उसको भूल जाते हैं और फिर बुढ़ापे में सुनते हैं “बच्चा-बूढ़ा एक समान”।(जबकि समान होते नहीं) सच बताऊँ जैसे ही मैं मम्मी के पास जाती हूँ तो भतीजों और बच्चों के साथ फिर उछल-कूद,मार-पीट सब करने का मन करता है। करती भी हूँ लेकिन भइया से छिपकर।(मैं जानती हूँ उसे मेरी चिंता रहती है कि इतनी बिमार रहती हूँ कहीं इस उछल-कूद में और तबियत ना ख़राब हो जाए)
दुख होता है कि हम सबने जैसा बचपन जिया है वैसा हमारे बच्चे नहीं जी पा रहे।इसके लिए हम और माहौल दोनों ज़िम्मेदार हैं।कैसे ? ये हम सब जानते हैं समझाने की ज़रूरत नहीं।
आज तो बस अपने बचपन को याद करना चाहती हूँ। सबसे पहले मम्मी और अपने जन्मदिन की घटना से शुरु करती हूँ। एक बार (याद नहीं कितने साल की थी)मम्मी, मुझे और भइया को बाहर से बंद करके कहीं चली गईं थी उस वक्त हम दोनों सो रहे थे।मम्मी ने सोचा था कि हम दोनों के जागने से पहले आ जाएँगी लेकिन मैं जल्दी जाग गई और लगी दहाड़े मारकर रोने लगी थोड़ी देर बाद मम्मी आयीं और बोलीं “क्या हो गया आज तुम्हारा birthday है तो गुड़िया लेने गए थे।” उस दिन पहली बार अपने birthday के बारे में जाना था। गुड़िया देखते जो अनुभव किया शब्दों में ढालना कठिन है। उस समय आँख खोलने -बंद करने वाली और चूसनी वाली गुड़िया बहुत बड़ी बात होती थी। और वो मेरे पास थी उस गुड़िया को लक्ष्मी टॉकीज की एक दुकान में मैंने पसंद किया था।मम्मी का बलुआ घाट से छोटी सी कढ़ाई,तवा और चूल्हा लाना आज भी याद है और फिर उसपर मैं,बब्बी और टिंकू खाना बनाते थे। इक्कठ-दुक्कठ,आईस-पाईस,साइकिल चलाना ,सेवन स्टोन और टीचर बनना पसंदीदा खेल थे। भइया के साथ दुकान-दुकान और डॉक्टर -डॉक्टर भी खेला है और भइया हमेशा दुकानदार और डॉक्टर ही बनता था😀। मैं तो दरवाज़े के पीछे छिपकर पापा और भइया को खूब डराती भी थी(शादी के बाद भी डराया है पतिदेव को)बहुत मज़ा आता था। ये हरकत करने का फिर मन कर रहा है😀।
बचपन में चोरी भी की है हम तीन लोगों ने(मैं,बब्बी और टिंकू)।चोरी की भी थी तो आम के अचार और पके बेर की।खूब चुरा कर खाते थे आम का अचार और गुठली फेंकते थे टाँड़ पर कि किसी को पता ना चले।(उस चोरी का अपना ही मज़ा था)आम का अचार तो इतना पसंद था कि स्कूल में अगर मेरी कोई दोस्त अचार चाटती थी तो मैं छीनकर सीधे मुँह में डाल लेती थी ।और मेरी हँसी कब - कहाँ शुरु हो जाए कहना कठिन था।स्कूल में टीचर या टीचर के किसी रिश्तेदार की मृत्यु हो जाने पर शोक सभा में मैं आँख बंद करके और चुपचाप दो मिनट के लिए खड़ी नहीं हो पाती थी,हँसी बंद ही नहीं होती थी (मालूम नहीं क्यों)।
सुमन-सौरभ,चंपक,नंदन,चंदा मामा,लोटपोट और इंद्रजाल कॉमिक्स,पिंकी,बिल्नू,,चाचा-चौधरी इन किताबों को भूलना असंभव है ।इनमें छपे चुटकुले हम दोनों ममेरे भाइयों को खूब सुनाते थे ,ना सुनाने पर भइया लोग बोलते थे “अरे डॉली ,कुक्कू चुटकुल्ला सुनाओ” अब इन किताबों को पढ़ने पर पहले जैसा मज़ा नहीं आता।
हम लड़कियों से बचपन में दो प्रश्न ज़रूर पूछे जाते थे एक यह कि शादी किससे करेंगे और बड़े होकर क्या बनना है?अब लोग पूछते हैं या नहीं,मालूम नहीं। लेकिन मैंने तो आद्या से पूछा था तब वो बोली थी उसे ‘भीम’ से शादी करनी है और बड़े होकर टीचर बनना है।जब पूछे, “ कौन भीम’ तो बोली “अरे वही जो ढोलकपुर में रहता है।” मैं भी सबको यही बोलती थी कि टीचर बनना है और शादी डॉ मामा से करनी है(अब वो इस दुनिया में नहीं हैं)।डॉ मुझे बचपन से बहुत पसंद थे उनका सफ़ेद कोट और गले में आला लगाना बहुत पसंद आता था।इस पसंद को मेरे भगवान ने पूरा ध्यान रखा है ।😀
फिर से वही बचपन जीने के लिए दिल मचल रहा है आज भी खिलौने की दुकान में गुड़िया देखती हूँ तो मन मचल उठता है।मुझे बार्बी डॉल बिल्कुल पसंद नहीं मुझे तो गोल-मटोल गुड़िया पसंद है।इस बार खिलौने की दुकान जाऊँगी तो पक्का ख़रीदूँगी। हो सकता है मेरी इस हरकत पर कुछ लोग हँसेंगे लेकिन मैं अपने अंदर के बचपने को मारना नहीं चाहती ।
“बचपन के दिन भी किया दिन थे………..❤️।”Happy children’s day to all of u. अपने अंदर के बच्चे तो मरने मत दीजिए।वो मर गया तो सब ख़त्म हो जाएगा(जिज्ञासा,सीखने की इच्छा और भी बहुत कुछ)
Excellent thoughts and writing. Your blog always made my day. Keep writing.
ReplyDelete🙏
DeleteAnand Singh Bisht, Lucknow
ReplyDeleteAaj wo bachpan achchha lagta hai kyonki us wakt man bindas tha. Aaj bahut cheejo ne use jakad diya hai.
ReplyDeleteBehtar isse bhi hai ki apna bachpan aaj ke bachcho mein lhojo aur unke saath saath jiya jay.
Lekhan mein jeewant ta hai kyonki ye maulik bhi hai. Swatantra abhivyakti ke liye badhai ke paatra hain aap
🙏
Delete👍👍
ReplyDelete😊
Deleteसच में तुमने तो फिर से बचपन की शरारतें याद दिला दी
ReplyDelete😀🙏
Deleteबचपन के दिन तो भूल के भी भुला नहीं सकते । अब यही सोचते हैं 'काश' वो बचपन वाले दिन फिर से लौट आये। 🙏
ReplyDeleteSuperb 👌
ReplyDeleteGreat writing skills��
ReplyDeleteAble to connect to the story very well��
Bahut hi adbhud kaha hai aapne but ab bachpana kahi kho si gyi hai
ReplyDeleteBahut mazza aaya 👌😍
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