चाहत

    आज मैं चौदह वर्ष की हो गई मध्य रात्रि उत्सव का माहौल चल रहा था तभी माँ को तेज पेट दर्द शुरु हो गया। पिताजी ने तुरंत कार निकाली और माँ को लेकर अस्पताल भागे।अब मैं कोई छोटी बच्ची तो थी नहीं कि यह ना जानूँ कि यह सामान्य पीड़ा नहीं है बल्कि प्रसव पीड़ा है।समझ नहीं आ रहा था रोती हुई पाँच साल की छोटी बहन को सँभालूँ या दिल में उठ रही टीस को।

    मन में माँ-पिता जी के लिए नफ़रत उसी दिन पैदा हो गई थी जिस दिन माँ ने मुझसे चहकते हुए कहा था,”तनु तुम्हारा भाई आने वाला है।” मैंने तुरंत गुस्से में तेज आवाज़ में कहा हम दो बहनें तो हैं  फिर भाई की क्या ज़रूरत ?और तुम पार्लर के चक्कर में हम दोनों को समय तो दे नहीं पाती और अब एक भाई? इतना बोलते ही एक झन्नाटेदार थप्पड़ दिया था पिताजी ने। बोले, “भाई आने की ख़ुशी नहीं है कैसी लड़की है।”चाचू ने आकर बचा लिया था वरना और पिटाई होती। पिताजी का यह रूप पहली बार देखा था मैं और छोटी बहन दोनों सहम गए थे।

    पिताजी जो फ़ेसबुक पर बेटियों के समर्थन में इतना कुछ लिखते थे सब झूठ था।इतनी बड़ी बड़ी बातें सब बकवास। उस दिन उनके चेहरे का नक़ाब उतर गया था।यह मेरे लिए किसी सदमें से कम ना था।अब तो उनसे घृणा होने लगी थी।

   माँ ने जब देखा कि मैं अब चिड़चिड़ी होने लगी हूँ तो मुझे एक दिन बहुत प्यार से समझाया कि “शादी के बाद तुम दोनों चली जाओगी तब तुम्हारा भाई ही हमें बुढ़ापे में सँभालेगा और भाई के होने पर तुम्हारे दादू सम्पत्ति में हिस्सा भी देंगे नहीं तो सारी सम्पत्ति चाचू को दे देंगे क्योंकि उनका बेटा है।यह बातें गले नहीं उतर रही थी क्यों कि जब दादी बीमार थीं तो मेरे मम्मी पापा ने कितनी सेवा की थी यह मैंने देखा था दादी तो मरते दम तक काम की थी और दादू  ऐसे बिल्कुल नहीं थे। फिर बेटे की चाह क्यों थी ? 

    छोटी बहन को मैंने और दादी ने पाला। दादी के जाने के बाद मैं ही उसके सारे काम करती थी। पढ़ाई और खेलकूद तो भूल ही गई थी और अब फिर एक भाई।समझ नहीं आया कि जब भ्रूण लिंग मालूम करना अपराध है तब इन दोनों को कैसे मालूम कि बेटा ही होगा?  

       नौ माह बीतने के बाद उसे भी मेरे जन्मदिन के दूसरे दिन ही जन्म लेना था यह मेरे लिए और कष्टकारी था ।सब अस्पताल में थे और मैं अपनी छोटी बहन के साथ भगवान के सामने हाथ जोड़े बैठी थी। क्यों और किसलिए मालूम नहीं?बहन मेरी गोद में ही सो गई थी। 

       अचानक तेज़ी से दरवाज़ा पीटने की आवाज़ से मैं हड़बड़ा कर उठी। दरवाज़ा खोला तो सामने चाचू थे मुझे गले लगाते हुए बोले,”दिन निकलने पर अस्पताल ले चलूँगा “ऐसा बोलकर वो किचन में जाकर ना जाने क्या बनाने लगे?

   मन में उथल - पुथल मची थी कि ना जाने क्या हुआ? छोटी बहन को उठाकर तैयार किया और यंत्रवत काम करते हुए कब चाचू के साथ अस्पताल पहुँच गई मालूम ही नहीं पड़ा।तंद्रा तो तब टूटी जब पिताजी ने कपड़े में लिपटे बच्चे को गोद में दिया और ख़ुशी से चहकते हुए बोले” सँभालो अपने भाई को”। माँ की ओर देखा तो उन्होंने बोला , “ अब तुम्हें ही इसे पालना है,माँ तो तुम ही होगी इसकी।”

   और मैं यह सोच रही थी वाह रे मेरे माँ-बाप चौदह वर्ष की उम्र में ही मुझे माँ बना दिए और क्या ये वही लोग हैं जो कहते थे कि ,”मेरी बेटियाँ ही मेरे बेटे हैं।” माँ - पिताजी की चाहत पूरी हो गई थी।

      

     

     

    

Comments

  1. Balman par awastha ki pahli bela par hi itna bojh us samay ke samajik mansikta ka parichayak hai, jisme pashuta abhi bhi kaafi bachi huai thee. Tatkaleen paristhityo ka kashtprad kintu sajeev aur yatharthwadi chitran kiya aapne. Wah shabdo ko khoob swar diya hai. Dhanyawad

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  2. सही कहा ,ऐसा ही होता है

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  3. बहुत बढ़िया कहानी। सच्चाई बयां करती हुइ।

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  4. बढ़िया लिखा है।

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  5. Ek hakikat ko aapne bahut hi acche tarike se kahani ka roop de diya ...kaash kuch log esse kahani hi samaj kar pade aur apni soch badle ...

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  6. सत्य का बहुत ही प्रभावशाली चित्रण, पता नहीं कब हम लोग इन संकीर्ण विचारों से ऊपर उठ कर सोच पाएँगे, आपको बहुत बहुत साधुवाद

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  7. बहुत सुन्दर रचना।

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  8. Your stories touch differently. Just love your writings, very beautifully written 🫶

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