प्रफुल्लित मन

आज फिर उदासी छाई है
स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन रहता है
आज शरीर फिर अस्वस्थ है
अस्वस्थ शरीर में प्रफुल्लित मन कहाँ से लाऊँ
थक गई हूँ, 
कब स्वस्थ हूँगी ज्ञात नहीं
नित नए कष्ट 
कभी शारीरिक कभी मानसिक
अब कहाँ से हिम्मत लाऊँ
टूट रही हूँ बिखर रही हूँ
इस परिस्थिति में कुछ ताने मार जाते हैं
कुछ हिम्मत बढ़ा जाते हैं
उदासी में वही ताने याद आते हैं
क्यूँ ना उन तानों को भूल जाऊँ
जैसे मैसेज डिलीट करती हूँ क्यूँ ना उन तानों को डिलीट करूँ,
हिम्मत बढ़ाने वाली बातों को ही सेव करूँ।
फिर हिम्मत बाँध रही हूँ 
लड़ने को तैयार हो रही हूँ
उदासी से बिमारी बढ़ती है
इस सत्य को जान चुकी हूँ।
पुनः मन ने ठान लिया है
अब प्रफुल्लित ही रहना है
जिन्होंने ताने मारे हैं उनको स्वस्थ होकर दिखाना है।





Comments

Popular posts from this blog

बात ही बात

कर्मकांड

बिटिया रानी