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व्यथित मन

 व्यथित हूँ , हाँ मैं व्यथित हूँ  अश्रु भी सूख गए हैं कैसे सच स्वीकार करूँ  कि मैं मन से अशक्त हूँ  टूटना तो नहीं चाहती पर टूट रही किससे कहूँ मन की व्यथा सुनने वाला चाहिए और कहने का सामर्थ्य भी कहाँ से लाऊँ वह साहस किसको सुनाऊँ वह व्यथा जो समझे, बिना कोई प्रश्न किए और समझाए सुन मेरी व्यथा किन्तु अब रोना चाहती हूँ खुलकर किसी के गले लगकर   व्यथा को अश्रु से बहाना चाहती हूँ हाँ, मैं व्यथित हूँ ॥

बधाई गीत

ब्रज में बाजे बधाई वृषभानु घर लाली आईं देख सुता मुख माँ हरषाईं पुत्री रत्न गोद में आईं सब मिल दे उन्हें बधाई वृषभानु घर लाली आईं ब्रज में बाजे बधाई वृषभानु घर लाली आईं देख उन्हें सब पुलकित होएँ राधा राधा कहकर बुलाएँ कीर्ति घर होवे गवनई वृषभानु घर लाली आईं ब्रज में बज रही बधाई वृषभानु घर लाली आईं सब देवों ने फूल बरसाए दर्शन करने ब्रज भी आए हरि को उनकी महिमा बताई  वृषभानु घर लाली आईं ब्रज में बाजे बधाई वृषभानु घर लाली आईं

छठी गीत

 रो रो बिताऊँ मैं सारी रतिया मनाऊँ कैसे लाला की छठिया लूँ मैं लालन की कैसे बलैयाँ उतारूँ मैं कैसे उनकी नज़रिया  पड़ी हाथों में मेरे हथकड़ियाँ  मनाऊँ कैसे लाला की छठिया सजाऊँ कैसे छठी की थलिया खिलाऊँ कैसे माखन मिसिरिया पहरे में बैठी सोचे है मइया मनाऊँ कैसे लाला की छठिया बाँटे बाबा कैसे मोहरिया गाऊँ मैं भी कैसे सोहरिया नैनों से बरसे है पनिया मनाऊँ कैसे लाला की छठिया॥