व्यथित मन
व्यथित हूँ , हाँ मैं व्यथित हूँ अश्रु भी सूख गए हैं कैसे सच स्वीकार करूँ कि मैं मन से अशक्त हूँ टूटना तो नहीं चाहती पर टूट रही किससे कहूँ मन की व्यथा सुनने वाला चाहिए और कहने का सामर्थ्य भी कहाँ से लाऊँ वह साहस किसको सुनाऊँ वह व्यथा जो समझे, बिना कोई प्रश्न किए और समझाए सुन मेरी व्यथा किन्तु अब रोना चाहती हूँ खुलकर किसी के गले लगकर व्यथा को अश्रु से बहाना चाहती हूँ हाँ, मैं व्यथित हूँ ॥