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Showing posts from November, 2021

बिछोह

 मुझे तड़पाना छोड़ दो यूँ सपनों में आना छोड़ दो ज्ञात होता नियति में है बिछड़ना तो क्यों ही करती प्रीति अंतिम क्षण तक चाहा था  संग तुम्हारा पर हाय रे ! नियति उसको यह मंज़ूर ना था बिछोह का कष्ट तुम क्या जानो स्वभाव से हो तुम छलिया मैं नहीं कोई और सही तुम्हारी प्रवृत्ति यही है  चलो यह भी सच स्वीकार किया गिला क्या ही करूँ जब नियति में ही था बिछड़ना बस विनती इतनी है सपनों में आना छोड़ दो मुझे यूँ तड़पाना छोड़ दो ।

कभी तो नज़र मिलाओ

       प्रकृति के कण- कण में संगीत है।वायु के चलने पर पेड़ों के पत्तों का संगीत,  चिड़ियों के चहचहाने में संगीत ,नदी के बहने में संगीत, झरने - समुद्र सब में संगीत। हर जगह संगीत विद्यमान है शायद इसीलिए ईश्वर ने सबको संगीत प्रेमी बनाया है। हाँ, कैसा संगीत पसंद है वो अलग हो सकता है।मुझे तो लोकगीत, फ़िल्में गाने और शास्त्रीय सभी पसंद है (शास्त्रीय गानों से लगाव मेरे भतीजों के गायन क्षेत्र में आने के बाद हुआ)। पसंदीदा गाने सुनते वक्त मुझे और मेरे पतिदेव को उससे जुड़ी कोई घटना या इंसान (अगर है तो) याद ज़रूर आता है।    अदनान सामी का “ कभी तो नज़र मिलाओ” जब भी सुनती हूँ तो एक शर्म मिश्रित मुस्कान आ ही जाती है। आज भी ऐसा ही हुआ। आख़िर इस गाने से मीठी यादें जो जुड़ी हुई है।     जून 2000 में अदनान सामी का “ कभी तो नज़र मिलाओ”  एल्बम आया था काफ़ी लोकप्रिय हुआ था।दावे से कह सकती हूँ हर संगीत प्रेमी के घर यह कैसेट रहा होगा।  मुझे धुँधला सा याद है टीवी पर गानों की रेटिंग से संबंधित कार्यक्रम आता था जिसमें यह पहले पायदान पर रहता था।भइया भी गानों का...

नि:शब्द संघर्ष

कितनी पीड़ा में रही होगी  जब तुमने ये कदम उठाया होगा काश तुमने एक बार साझा की होती अपनी मानसिक वेदना को। कितनी पीड़ा में रही होगी जब तुमने ये कदम उठाया होगा जिंन्दगी एक रंगमंच है  बखूबी निभाया अपना किरदार  कि हम सब भी ना समझ सके तुम्हारी मानसिक वेदना को। कितनी पीड़ा में रही होगी जब तुमने ये कदम उठाया होगा। शायद तुम्हें भी सिखाया गया होगा जहाँ डोली जाए वहीं से अर्थी उठने की रीति वह रीति तुम निभा गई कितनी पीड़ा में रही होगी  जब तुमने ये कदम उठाया होगा। काश यह रीति ना निभाती हम दोस्तों को पीड़ा बताती कुछ तो समझते कुछ तो करते यूँ ना तुमको हारने देते । कितनी पीड़ा में रही होगी  जब तुमने ये कदम उठाया होगा।

रिश्ता

 उफ़्फ़, ये दर्द और रात का रिश्ता समझ ना आता मुझे यह रिश्ता । साँझ ढले हौले - हौले है बढ़ता  और धीरे - धीरे परवान वो चढ़ता  क्यों है इन दोनों में गहरा नाता जो मुझे समझ ना आता  रैन होती जब शबाब पर  तब ही दर्द होता  उफान पर क्यों , इन दोनों को मिलना  सदा तन्हाई में पीड़ा देता है  दोनों का तन्हाई में मिलना किन्तु  इनको तो आनंद आता  तन्हाई में हौले - हौले मिलना क्या है इन दोनों में रिश्ता  जो समझ ना आता। उफ्फ, ये दर्द और रात का रिश्ता ।

मोहब्बत

 मुझे है तुमसे मोहब्बत   मोहब्बत की है गुनाह नहीं ।  फिर क्यों ना सबको बता दूँ कि   कि मुझे है तुमसे मोहब्बत। जब पहली बार दीदार हुआ था  अपनी ख़ुश्बू  से मुझे आग़ोश में लिया था  मैं तड़प उठी थी उसी समय तुमको अपने अधरों से लगाने को। पर तुमने मुझको नकार दिया था अभी तो छोटी बच्ची हो यह कहकर टाल दिया था मैं भी तब ठहर गई थी। पर जब- जब तेरा दीदार होता मन मेरा बेचैन होता जान ना पाई, पहचान ना पाई  कि यही तो है मोहब्बत । धीरे- धीरे हम दोनों का मिलन हुआ नियत समय पर मिलना तय हुआ प्रारंभ में हम तीन ही मिलते थे ना मिलने पर बेचैनी का अनुभव करते थे तब भी ना जानी यह तो है मोहब्बत की निशानी।  कितनों के संग तुम्हें साझा किया है फिर भी ना मन में कड़वाहट है ना कोई शिकायत  क्योंकि यही तो है सच्ची मोहब्बत। मोहब्बत का होता है दुश्मन ज़माना यह सच भी आज ही मैंने है जाना। हमको जुदा करने को बैठें हैं डॉक्टर तैयार हर मोहब्बत करने वाले ने दी है परीक्षा मैं भी दे दूँगी । जब भीषण गर्मी में, तुम्हारे और प्रेमी हुए थे बेवफा तब भी ना कर पाई मैं बेवफ़ाई  मोह...

माँ

     आज सब बहुत खुश थे एक-दूसरे को बधाइयाँ दे रहे थे सबसे ज्यादा बधाई मुझे दे रहे थे और कह रहे थे कि मेरे कारण सब नए रिश्ते में बँधने जा रहे, क्योंकि मैं माँ बनने वाली थी मेरे कारण कोई दादी,नानी,चाचा,ताऊ,मामा और ना जाने क्या-क्या बनने वाले थे।सब सलाह दे रहे थे कि पहली बार माँ बनने जा रही हो संभल कर रहना ,भारी सामान नहीं उठाना,खाने पर ध्यान देना और पता नहीं क्या - क्या ? और मैं चुपचाप सबकी बात सुन रही थी और सोच रही थी कि क्या सचमुच मैं पहली बार माँ बनने जा रही हूँ ? माँ तो मैं 14 साल की ही उम्र में ही बन गई थी जब मेरी माँ ने मेरे भाई को जन्म दिया था और कहा था ,”अब तुम इसकी माँ हो आख़िर तुम्हें ही तो इसे पालना है।”         सच बताऊँ तो जैसे ही डॉ ने कहा कि,”आप माँ बनने वाली है “तो लगा चीख - चीख कर सबसे कह दूँ कि मुझे फिर माँ नहीं बनना, लेकिन आवाज गले में ही अटक गई थी। पतिदेव के चेहरे की खुशी देखकर समझ नहीं पाई क्या करूँ,क्या बोलूँ ?  मैं फिर से माँ बनने के लिए तैयार नहीं थी। दिमाग  में क्या चल रहा था कैसे बताऊँ ? मैं जड़वत हो गई थी कि तभी कानों ...

बचपन

      होली और 14 नवम्बर जैसे - जैसे क़रीब आते हैं मैं बौराने लगती हूँ। होली में मन करता है सबकों रंग में डुबों दूँ और नवम्बर में तो बस दिमाग़ में ख़ुराफ़ात चलती रहती है । हर वक्त शैतानी करने का मन करता है । 14 नवम्बर के दो दिन पहले से ही मन मचलने लगता है।फिर से उस बचपन को जीने की इच्छा जाग जाती है वैसे देखा जाए तो हम सब में एक बच्चा हमेशा जीवित रहता है बस ज़िम्मेदारियों के बोझ से हम उसको भूल जाते हैं और फिर बुढ़ापे में सुनते हैं “बच्चा-बूढ़ा एक समान”।(जबकि समान होते नहीं) सच बताऊँ जैसे ही मैं मम्मी के पास जाती हूँ तो भतीजों और बच्चों के साथ फिर उछल-कूद,मार-पीट सब करने का मन करता है। करती भी हूँ लेकिन भइया से छिपकर।(मैं जानती हूँ उसे मेरी चिंता रहती है कि इतनी बिमार रहती हूँ कहीं इस उछल-कूद में और तबियत ना ख़राब हो जाए)     दुख होता है कि हम सबने जैसा बचपन जिया है वैसा हमारे बच्चे नहीं जी पा रहे।इसके लिए हम और माहौल दोनों ज़िम्मेदार हैं।कैसे ? ये हम सब जानते हैं समझाने की ज़रूरत नहीं।   आज तो बस अपने बचपन को याद करना चाहती हूँ। सबसे पहले मम्मी और अपने जन्मदि...