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Showing posts from September, 2021

सपने

अजीब होते हैं सपने कभी डरावने,कभी सुहावने कब कौन चुपके से आकर मन खुश कर जाए और कब कौन रुला कर चला जाए कब किस बात पर रुला दे , कब हँसा दे कब एक देस से दूसरे देस पहुँचा दे कब बिछड़ों से मिला दे कब वियोग का दुख दे दे वाकई बहुत अजीब होते हैं सपने। कब हिम्मत बढ़ा दे कब घटा दे कब डर से थर थराहट पैदा कर दे किसी का इस पर जोर नहीं वाकई बहुत अजीब होते हैं सपने।

प्रफुल्लित मन

आज फिर उदासी छाई है स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन रहता है आज शरीर फिर अस्वस्थ है अस्वस्थ शरीर में प्रफुल्लित मन कहाँ से लाऊँ थक गई हूँ,  कब स्वस्थ हूँगी ज्ञात नहीं नित नए कष्ट  कभी शारीरिक कभी मानसिक अब कहाँ से हिम्मत लाऊँ टूट रही हूँ बिखर रही हूँ इस परिस्थिति में कुछ ताने मार जाते हैं कुछ हिम्मत बढ़ा जाते हैं उदासी में वही ताने याद आते हैं क्यूँ ना उन तानों को भूल जाऊँ जैसे मैसेज डिलीट करती हूँ क्यूँ ना उन तानों को डिलीट करूँ, हिम्मत बढ़ाने वाली बातों को ही सेव करूँ। फिर हिम्मत बाँध रही हूँ  लड़ने को तैयार हो रही हूँ उदासी से बिमारी बढ़ती है इस सत्य को जान चुकी हूँ। पुनः मन ने ठान लिया है अब प्रफुल्लित ही रहना है जिन्होंने ताने मारे हैं उनको स्वस्थ होकर दिखाना है।

मेंहदी

सर्वप्रथम हरितालिका तीज की बहुत,बहुत बधाई।        लखनऊ में बिताए सारे त्यौहारों की बहुत अच्छी यादें हैं और हर त्यौहार से जुड़ी मजेदार घटना जिसको याद करके चेहरे पर मुस्कान ना आए ऐसा हो ही नहीं सकता। जो घटना बताने वाली हूँ उससे आप सब के चेहरे पर भी मुस्कराहट आ जाएगी।   मुझे बचपन से ही मेंहदी लगवाने का शौक रहा है।लेकिन मुझे मेंहदी रचती नहीं थी क्योंकि मेरे हाथ बहुत ठंडे रहते हैं।(मेंहदी रचने और ना रचने का संबंध पति या सास के चाहने या ना चाहने से बिल्कुल नहीं है।इसलिए अगर मेंहदी रच रही तो  इस गफलत में ना रहे कि आपके पति आपसे बहुत प्यार करते हैं, उन पर निगाह रखिए😜) अब हाथ पहले से थोड़ा गरम रहने लगा है और मेंहदी कोन में केमिकल पड़ा होता है तो थोड़ा रच जाती है।    सगाई और शादी पर मेरी भाभी की लड़की रिंकी और बहन महिमा ने बहुत मेहनत से बहुत सुन्दर मेंहदी लगाई थी लेकिन जब रिंकी सुबह -सुबह यह देखने आई कि मेंहदी कितनी रची है ? तब उसका पारा सातवें स्थान पर पहुँच गया बोली “आग लगे इस हाथ को,क्या करें कि रच जाए” वो अपना गुस्सा उतार रही थी और मैं किंकर्तव्यविमूढ़...

इंतजार

 आज मन फिर उदास है आँखें थक गईं उनका रास्ता देखते। कब आएँगे ? इस इंतजार में छोड़ दिया सोना उनमें क्या खास है ! जो आज मन फिर उदास है प्रातः उम्मीद जागी थी शायद मध्यान्ह में आएंगे किन्तु फिर निराशा हाथ आई। नए शहर में वे ही मेरे साथी थे उनका मध्यान्ह में एक-एक कर आना मिलकर दाना चुगना दाने चुगते-चुगते एक-साथ उड़ जाना गिल्लू का उनसे पहले आना कहाँ गए सब  आज भी ना आए लगता है रूठे हैं मुझसे मैं भी मना लूँगी आज ना आए तो क्या ?  कल आएँगे  कल फिर उनकी राह देखूँगी जब वे आएँगे तो मैं खिल उठूँगी आज उदास हूँ तो क्या कल ना उदास रहूँगी।