सोचा ना था

सदा तुमने अपने मन की की,
ना सुनते थे बात किसी की।
फिर क्यों मानने लगे थे मेरी,
जब फोन पर बताते थे तकलीफ़ अपनी।

मैं समझाती—
डॉक्टर का कहा कर लो थोड़ा-थोड़ा,
तुम कहते—
कहती हो बिटिया, तो कर लूँगा।

मेरी बात का मान भी रखते थे,
यह माँ मुझे बताती थीं—
तुम इतनी मानोगे मेरी,
सोचा न था।

वीडियो कॉल पर कहा था तुमने—
"तकलीफ़ बहुत है, बिटिया"।
तब मैंने कहा था—
"ठीक है पापा, अब तुम सो जाओ।"

और तुमने यह भी मान लिया...
ले ली चिर-निद्रा।
सोचा न था—
कहा मेरा तुम यूँ मानोगे।






Comments

  1. Heart touching ♥️

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  2. मर्मस्पर्शी

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  4. दिल को दिल को छू लेने वाली कविता

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  5. Says everything in a few lines

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  6. Baat man lene ki swikriti jo yaadgaar ban gayee. Aise to pahle bhi mante the, lekin is baar maan lena khal gaya. Aisa hi mook prem shant hote huae bhi bol deta hai jiski kasak bhulti nahi.

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  7. ❤️❤️❤️

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  8. Beautifully expressed

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  9. सुन्दर मार्मिक कविता

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  10. Adbhut lekhan👌👏❤️

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  11. बहुत ही भावुक और हृदयस्पर्शी कविता है। इसमें पिता-पुत्री के रिश्ते का अपनापन और बिछड़ने का दर्द बड़ी सादगी से झलकता है। शब्द सीधे दिल को छूते हैं और भावनाओं को सहजता से व्यक्त करते हैं। ,,,🙏

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  12. बहुत ही भावुक और हृदयस्पर्शी कविता है। इसमें पिता-पुत्री के रिश्ते का अपनापन और बिछड़ने का दर्द बड़ी सादगी से झलकता है। शब्द सीधे दिल को छूते हैं और भावनाओं को सहजता से व्यक्त करते हैं। यह कविता केवल शब्द नहीं, एक गहरा अनुभव और स्मृति बन गई है।

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