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असहाय वृक्ष

 छाई निराशा , वृक्षों में,  निसहाय देख रहे, कटते साथी को, व्यथित हो, मानो बोल रहे, संगी - साथी बिछड़े मेरे,  लुप्त सावन - भादों की अठखेली,  मूल हुआ दुर्बल मेरा,  काया भी, अब रुग्ण हुई,  होगा अब परिवर्तन,   परिवर्तन का, दोष ना देना  दोषी हो तुम सब ही, दे, नाम विकास का, निर्दयी , निष्ठुर बन  तुमने हमको काटा ।।