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Showing posts from June, 2024

संकल्प शक्ति

    क्या कोई स्त्री विवाहोपरांत 30+ या‌ 40+ पर अपनी योग्यता के आधार पर अपनी पहचान नहीं बना सकती ? 50+ इसलिए नहीं लिख रही कि तब तक उनके पति सरकारी पद से सेवानिवृत्त हो गए होते हैं या होने वाले होते हैं।         प्रत्येक इंसान को स्वयं की पहचान अवश्य बनानी चाहिए ऐसा मेरा मानना है। आज इस विषय पर इसलिए लिख रही कि मैं जानती हूॅं कि बहुतों को ऐसा लगता है कि मैं अपने पति के सरकारी पद का इस्तेमाल कर "ऑल इंडिया रेडियो" में पहुॅंची हूॅं । हाॅं, बस वो मेरे समक्ष नहीं बोलते।      मैंने सबसे पहले 2015 में पहली कहानी "बालमन" लिखी थी। जिसको पढ़ने के बाद पतिदेव ने कहा "तुम लिखती क्यों नहीं ? लिखा करो।" उस वक्त लगा ऐसे ही कह दिए होंगे । लेकिन यह कहने के पीछे एक बहुत बड़ा कारण यह था कि मैं 2014 की लम्बी अस्वस्थता के कारण अवसाद से ग्रसित थी और अब मैं शारीरिक रूप से गृहकार्य करने में भी समर्थ नहीं थी । 2014 से पहले बच्चों को मैं ही पढ़ाती थी लेकिन अब उसमें भी मेरा मन नहीं लगता था। जबकि बच्चों को पढ़ाना मुझे बहुत पसंद था। इसीलिए पतिदेव को लगा कि मैं उसी में व्यस्...

तपती धरा

 बादल आए बादल आए  काले - काले बादल आए तपती धरती की प्यास बुझाने जल से भरे बादल आए देख अम्बर में जलधर को  गाछ , धरा , सरिता पुलकित  पशु - पक्षी संग हलधर हर्षित वृक्ष झूम - झूम कर  मेघों का कर रहे हैं स्वागत बैलों संग कृषक भी झूम रहे किन्तु यह क्या ! घन को चीर निकला सूरज लगता रूठ गए फिर से पयोधर  जाते देख अम्बुद को हुए पशु - पक्षी व्याकुल नर - नारी भी आकुल खिन्न मन से सब मानुष शिकवा कर रहे धरा से क्यों बारम्बार बदल रहा मौसम ? तब क्रोधित हो धरती गरजी आक्रोशित स्वर में वह बोली नहीं आएँगे अब काले घन मैंने अपनी संतान दे  दिया तुम्हें कोष अमूल्य  पर तुम तो निकले अज्ञानी पर्वत , वृक्ष , नदी सब मेरे बालक दोहन कर इनका अपार अंक सूना कर दिया मेरा किन्तु कर रही हूँ विनती मैं गोद पुनः भर दो मेरी देखोगे फिर वैसी हरियाली समय बहुत नहीं है बीता वृक्ष लगा मुझे बचा लो ऋतुएँ होगी तब अनुकूल बात मेरी गाँठ बाँध लो कुदरत से खिलवाड़ त्याग दो

अम्बुज

 किससे कहूॅं  ह्रदय की व्यथा हे अम्बुज ! बन सखा सुन लो मेरी गाथा   वेदना मेरी तुम समझना  अपने अंतस में उसको रखना   किंतु बोझ मन में ना रखना मेरे बदले तुम गर्जना अश्रु नीर‌ को समेट  उर में अपने रखना किंतु मेरे अश्रु  का अपमान ना करना  चक्षुजल बरसा कृषक  और धरा की प्यास बुझाना सखा बन तुम मेरे   मेरे अश्रु की लाज तुम रखना ।।