ऋतुराज
आई है ऋतु बसंत
उल्लासित हो लिख दूॅं
कैसे मैं कविता
बहती है क्या अब भी
वैसी ही बयार
लुप्त हो गई
कूक कोयल की
अनुभूति होती थी
जिसकी होते ही भोर
रहीं नहीं अब
पहले जैसी ऋतुएँ
सरसों के पुष्प
चोटिल ओलों से
बौर आम के
घायल वृष्टि से
हलधर का मुख मलिन
देख फसल का हश्र
लेखनी भी हुई शांत
ऋतुराज के आगमन पर।।
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