Posts

Showing posts from June, 2022

याददाश्त

      मैं और मेरी याददाश्त,क्या ही कहूँ इसके बारे में।कभी-कभी याददाश्त के कारण बड़ी embarrassing स्थिति उत्पन्न हो जाती है।उस समय लगता है धरती फटे उसी में समा जाऊँ।और कभी-कभी बहुत चिड़चिड़ाहट होती है कि मैं ऐसी क्यों हूँ।इसी याददाश्त के आधार पर अनगिनत बार मैं “घमंडी” शब्द से भी सुशोभित हुई हूँ।       सबसे ज़्यादा ख़राब याददाश्त मेरी लड़कों और किसी वस्तु के क्रय मूल्य से संबंधित है।वस्तु का क्रय मूल्य तुरंत भूलती हूँ और लड़कों का ना नाम याद रहता है ना शक्ल।भइया के एक मित्र से तो झगड़े जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई थी।भइया के घर पर ना रहने की स्थिति में मुझे ही उसके दोस्तों को बताना होता था कि वो घर पर नहीं है।यह मेरे लिए बहुत भारी काम होता था, क्योंकि जैसे ही वो घर से निकलता था वैसे ही अनगिनत मित्रों का आना शुरु हो जाता था।इनमें से कुछ के नाम और शक्ल दोनों याद रहते थे तो कुछ के केवल नाम, वहीं कुछ के केवल शक्ल और कुछ के ना नाम याद रहते थे और ना शक्ल।        भइया के एक दोस्त इत्तेफाकन तभी आते थे जब वो घर पर नहीं होता। मुझे उनकी शक्ल तो याद हो ग...

अम्मा

      आज मंदिर के बाहर एक दुकान में तुतुई (जैसा जलनेति करने का लोटा होता है ठीक वैसा ही लेकिन मिट्टी का और आकार में बहुत सा) दिख गई।सच तो यह है कि मुझे उसका नाम नहीं मालूम।बचपन से तुतुई कहा तो वही लिख रही हूँ। सालों बाद तुतई देख मैं उसको ख़रीदने के लिए मचल उठी और झट से उसको ख़रीदने के लिए कार से उतर गई ।उसको ख़रीदने के उपरांत बचपन की यादों में खो गई।तुतई हो और अम्मा का ज़िक्र ना हो ऐसा हो ही नहीं सकता।       आज अम्मा हमारे बीच नहीं हैं।28 मई को अम्मा ने देह त्याग दिया।कभी-कभी दिल के रिश्ते खून के रिश्ते बढ़कर होते हैं।मेरे संबंध में यह कुछ ज़्यादा ही सटीक बैठता है।अम्मा और अम्मा के परिवार से कुछ ऐसा ही संबंध है।आज अम्मा इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनसे जुड़ी अनगिनत यादें हैं।       अम्मा के संपर्क में कब आई याद ही नहीं।दोनों घरों के आँगन के मध्य दीवार थी।अम्मा के बच्चों के विवाह या अन्य किसी प्रयोजन के लिए वो दीवार तोड़ दी जाती थी।उस दीवार में एक झरोखा भी बनाया गया था।जिससे सामान का आदान-प्रदान,बच्चों का आवागमन, मम्मी का अम्मा व अम्मा के बेट...