याददाश्त
मैं और मेरी याददाश्त,क्या ही कहूँ इसके बारे में।कभी-कभी याददाश्त के कारण बड़ी embarrassing स्थिति उत्पन्न हो जाती है।उस समय लगता है धरती फटे उसी में समा जाऊँ।और कभी-कभी बहुत चिड़चिड़ाहट होती है कि मैं ऐसी क्यों हूँ।इसी याददाश्त के आधार पर अनगिनत बार मैं “घमंडी” शब्द से भी सुशोभित हुई हूँ। सबसे ज़्यादा ख़राब याददाश्त मेरी लड़कों और किसी वस्तु के क्रय मूल्य से संबंधित है।वस्तु का क्रय मूल्य तुरंत भूलती हूँ और लड़कों का ना नाम याद रहता है ना शक्ल।भइया के एक मित्र से तो झगड़े जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई थी।भइया के घर पर ना रहने की स्थिति में मुझे ही उसके दोस्तों को बताना होता था कि वो घर पर नहीं है।यह मेरे लिए बहुत भारी काम होता था, क्योंकि जैसे ही वो घर से निकलता था वैसे ही अनगिनत मित्रों का आना शुरु हो जाता था।इनमें से कुछ के नाम और शक्ल दोनों याद रहते थे तो कुछ के केवल नाम, वहीं कुछ के केवल शक्ल और कुछ के ना नाम याद रहते थे और ना शक्ल। भइया के एक दोस्त इत्तेफाकन तभी आते थे जब वो घर पर नहीं होता। मुझे उनकी शक्ल तो याद हो ग...