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Showing posts from May, 2022

मिलन

     कितने दिनों से अस्पताल में भर्ती हूँ याद नहीं आ रहा।उम्र हो गई है और रही सही कसर बिमारी ने पूरी कर दी। चारों ओर आँख घुमाकर देख लिया पंकज कहीं नहीं दिख रहे थे।पंकज को अपने पास ना देखकर मुझे बेचैनी हो रही थी कि नर्स ने पास आकर कहा, “ परेशान मत होइए आपके पति और बच्चे बाहर हैं, दरवाज़े की ओर देखिए।” शायद वो मेरी will power बढ़ाने की कोशिश कर रही थी।लेकिन अब मैं हिम्मत हार चुकी थी।कमजोर फेफड़ों के साथ इतने साल जी ली क्या ये कम था?       बहुत हिम्मत करके मैंने दरवाज़े की ओर देखा तो पंकज और दोनों बच्चे बाहर खड़े दिखे।साथ में कोई और भी था।कहीं ये ललित तो नहीं? एक तरफ़ दिल बोल रहा था ये ललित ही है तो दूसरी ओर दिमाग़ कह रहा था कि ललित यहाँ कैसे हो सकता है? तभी बेटा अंदर आया और चहकते हुए बोला, “मालूम है ललित अंकल आए हैं तुमसे मिलने।”       मैं मुस्कुरा दी थी ललित का नाम सुनकर। “आज 29 मई है क्या” मैंने लड़खड़ाती आवाज़ में अपने बेटे से पूछा।उसने आश्चर्यचकित होकर मेरी ओर देखा और हाँ में सिर हिला दिया।मैं एक बार फिर मुस्कुरा दी।      पंद...

विदाई

 कौन कहता है बेटों की विदाई नहीं होती विदाई तो बेटों की भी होती है बस अपनी विदाई पर रोते नहीं। कभी पढ़ाई कभी कमाई  इन सबके लिए होती है विदाई। दिल भी पास, दर्द भी साथ  दर्द को छिपाना होता है अश्रु को पलकों से थामना होता है थामने में असमर्थ होने पर लड़के हो,क्या लड़की सा रोते हो? यह सुनना पड़ता है और फिर रोने का अधिकार त्याग पुरुषत्व के दिखावे मे  जीने को विवश होते हैं सच ही तो है बेटे नहीं रोते अपनी विदाई पर कौन कहता है बेटों की विदाई नहीं होती बस अपनी विदाई पर रोते नहीं।

बधाई

 चलो आज फिर बीते दिनों को याद करते हैं उन यादों को पुन: जीवन्त करते हैं चलो आज फिर बीते दिनों को याद करते हैं। कितनी पुरानी दोस्ती है  लोगों को बतलाकर उनको विस्मित करते हैं चलो आज फिर बीते दिनों को याद करते है। ना मिल पाने के ग़म को एक दूसरे के दिल में बसते हैं  इस सोच से मिटाते हैं चलो आज फिर बीते दिनों को याद करते हैं। मेरे जन्मदिन पर सबसे पहले तुम्हारी बधाई  और तुम्हारे जन्मदिन पर मैं —- चलो आज तुम्हें अचंभित करती हूँ सबसे पहले मैं बधाई देती हूँ तुम्हारे जन्मदिन पर कुछ तो विशेष करते हैं चलो आज फिर उन दिनों को याद करते हैं।

गुदगुदाते पल

       आज फिर एक बार हनुमान चालीसा पढ़ते वक्त मुस्कान आ गई।भगवान भी परेशान हो गए होंगे मुझ जैसी पुजारिन से।क्या करूँ मैं हूँ ही ऐसी।       बीता हुआ कल किसी ना किसी रुप में कभी ना कभी सामने आता ही है।आजकल तो कुची के बीते हुए कल को छोटे बच्चों में देखती हूँ और मुस्कुरा उठती हूँ उन दिनों को याद कर।बच्चे छोटे होते हैं तब लगता है कितनी जल्दी बड़े हो जाएँ और जब बड़े हो जाते हैं तब लगता है छोटे ही अच्छे थे।लेकिन उनके बाहर जाने के बाद उन की बचपन की यादें तो दिल को गुदगुदाती ही हैं।ऐसी ही कुछ यादें मेरी भी हैं जो गाहे-बगाहे याद आ ही जाती हैं।      परीक्षा के समय हम सबको भगवान अवश्य याद आते हैं,आद्या को तो उस समय विशेष रूप से भगवान याद आते हैं।उन दिनों प्रतिदिन शाम को मंदिर जाना उसकी आदत में शामिल हो जाता है।इसी क्रम में मैं भी उसके साथ मंदिर चली जाती हूँ।       एक दिन आरती के समय हम दोनों मंदिर पहुँच गए,आरती चल रही थी कि एक छोटी बच्ची (दो-अढ़ाई साल की) सबको हटाती हुई सबसे आगे पहुँच गई और हाथ जोड़कर खड़ी हो गई (मनमोहने वाला दृश्य) औ...