मिलन
कितने दिनों से अस्पताल में भर्ती हूँ याद नहीं आ रहा।उम्र हो गई है और रही सही कसर बिमारी ने पूरी कर दी। चारों ओर आँख घुमाकर देख लिया पंकज कहीं नहीं दिख रहे थे।पंकज को अपने पास ना देखकर मुझे बेचैनी हो रही थी कि नर्स ने पास आकर कहा, “ परेशान मत होइए आपके पति और बच्चे बाहर हैं, दरवाज़े की ओर देखिए।” शायद वो मेरी will power बढ़ाने की कोशिश कर रही थी।लेकिन अब मैं हिम्मत हार चुकी थी।कमजोर फेफड़ों के साथ इतने साल जी ली क्या ये कम था? बहुत हिम्मत करके मैंने दरवाज़े की ओर देखा तो पंकज और दोनों बच्चे बाहर खड़े दिखे।साथ में कोई और भी था।कहीं ये ललित तो नहीं? एक तरफ़ दिल बोल रहा था ये ललित ही है तो दूसरी ओर दिमाग़ कह रहा था कि ललित यहाँ कैसे हो सकता है? तभी बेटा अंदर आया और चहकते हुए बोला, “मालूम है ललित अंकल आए हैं तुमसे मिलने।” मैं मुस्कुरा दी थी ललित का नाम सुनकर। “आज 29 मई है क्या” मैंने लड़खड़ाती आवाज़ में अपने बेटे से पूछा।उसने आश्चर्यचकित होकर मेरी ओर देखा और हाँ में सिर हिला दिया।मैं एक बार फिर मुस्कुरा दी। पंद...