मेरी छोटी-छोटी खुशियाँ
“बच्चे मन के सच्चे”ये गीत रेडियो पर बज रहा था और मैं बच्चों को अपने माता-पिता के साथ बस स्टैंड पर बस का इंतज़ार करते हुए देखकर खुश हो रही थी।मुझे बच्चों को स्कूल जाते देखना बहुत पसंद है।ख़ास तौर पर छोटे बच्चों को, जब उनको स्कूल ड्रेस पहने गले में बोतल टाँगें देखती हूँ तो मन ख़ुशी से झूम उठता है।आद्या को स्कूल छोड़ने जाते वक्त मैं खिड़की से बाहर स्कूल जाने को तैयार बच्चों को देखकर मंद-मंद मुस्कराती रहती हूँ(आद्या,कुची और प्रणव के बचपन को याद कर)और पतिदेव आश्चर्य चकित होकर गाड़ी चलाते वक्त बीच-बीच में मुझे देखते हैं।उनके दिमाग़ में उस वक्त मुझे लेकर क्या चलता है? मालूम नहीं।दो-अढ़ाई साल बाद छोटे-बड़े सब बच्चे स्कूल जा रहे।इतने समय के अंतराल का प्रभाव नि:संदेह ना केवल बच्चों की पढ़ाई पर बल्कि उनके व्यक्तित्व विकास पर भी पड़ा।कहीं बच्चे स्कूल जाने को बेचैन तो कहीं माता-पिता, कहीं पढ़ाई के बोझ तले बच्चे स्कूल जाने से कतराने लगे थे और कुछ जगह माएँ आरामतलबी के कारण बच्चों को स्कूल भेजने से कतराने लगीं थीं।इस कोरोना का कुछ बच्चों के मस्तिष्क पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा।मेरे एक दोस्त ने बताया कि उसका बेटा तो स्कूल जाने को तैयार ही नहीं तो मैंने पूछा और बाहर खेलने को? उसने बताया कि वो तो घर से निकलना ही नहीं चाहता बोलता है, “बाहर निकलूँगा तो कोरोना हो जाएगा।” हम दोनों ने मालूम नहीं उस समय इस बात की गंभीरता को क्यों नहीं समझा कि उस बच्चे ने अपने पापा (मेरे दोस्त)की कोरोना से हालत बिगड़ते देखा था।जब हम सब डर गए थे तो वो तो एक मासूम बच्चा है। आद्या भी पहली बार स्कूल ना जाने को तैयार थी।ये वही आद्या थी जो स्कूल बंद होने पर स्कूल जाने के लिए रोती थी और तब रोना बंद करती थी जब हम दोनों उसको स्कूल ले जाकर गेट में लगा ताला दिखाते थे। नए शहर और नए स्कूल में उसे सामांजस्य बैठाने दिक़्क़त हो रही थी लेकिन दो दिन बाद फिर पहले जैसी सामान्य और कोर्स पूरा हो जाने पर भी स्कूल जाने के लिए बहाने बनाना शुरू।
ईश्वर की कृपा से अब सब सामान्य है।बच्चे स्कूल जाने को और माता-पिता बच्चों को स्कूल भेजने को उत्साहित।अब फिर स्कूलों में रेड डे,ग्रीन डे,यलो डे,होली,ईद,राखी,दशहरा,स्वतंत्रता दिवस,क्रिस्मस सब मनेगा।बच्चे अलग-अलग रूपों में तैयार होंगे।बच्चे फिर से दशहरे में राम-सीता,लक्ष्मण,हनुमान जन्माष्टमी पर कृष्ण-राधा,क्रिस्मस पर सान्ता बनेंगे ।उन बच्चों को विविध रुपों में सजे देख मैं फिर मुस्कुरा उठूँगी।
सर्वथा सत्य, यथास्थिति का बहुत सूंदर और सटीक चित्रण किया है आपने
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