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Showing posts from March, 2022

देवी गीत

 ए पिया हमका तू दरसन कराय दा उहै मइहर वाली का दरसन कराय दा मइया क मंगिया मा सिंदुरा लगाउब सिंदूरा लगाउब मइया टिकवा पहिराउब उही सिंदुरा कलकता से मंगाय दा ए पिया हमका तू दरसन कराय दा उहै मइहर वाली का दरसन कराय दा उहै मइहर वाली के चुड़िया पहिराउब चुड़िया पहिराउब मइया मेंहदी लगाउब  उहै चुड़िया फ़िरोज़ाबाद से मगाय दा ए पिया हमका तू दरसन कराय दा उहै मइहर वाली का दरसन कराय दा उहै मइहर वाली के चुनरी उड़ाउब चुनरी ओढ़ाइब ओहमा गोटवा लगवाउब उहै चुनरी जयपुर से मंगाय दा ए पिया हमका तू दरसन कराय दा उहै मइहर वाली का दरसन कराय दा

साइकिलीया कीन ला

 ऐ राजा अब तू साइकिलीया कीन ला साइकीलीया चलाय क वजनौं घटाय ला  उही साइकीलिया पय हमका घुमाय दा ऐ राजा अब तू साइकिलीया कीन ला। तोहार छाती ना छप्पन इंच का  छप्पन इंच ख़ातिर साइकिलीया कीन ला। गाड़ी म पेट्रोलवा अब तोहसे ना भराई ऐही ख़ातिर राजा तू साइकिलिया कीन ला। ऐ राजा ट्रैक्टरवा अब तू बेंच दा ट्रैक्टरवा बेचकर बैलवा ख़रीद ला ट्रैक्टरवा म डीज़ल तोहसे ना भराई तोहार छाती ना छप्पन इंच का  छप्पन इंच ख़ातिर साइकिलीया कीन ला। ऐ राजा अब तू साइकीलीया कीन ला उही साइकीलिया पर घूँघट काढ़कर हमहूँ चलब चौबीस म बोटिंग बूथ पर उहैं हम कमल पर ठप्पा लगाइब  ठप्पा लगाइ क कमल के जिताइब कमल के जिताए क साइकिल बिकाइब साइकिल बिकावै ख़ातिर  साइकिलीया कीन ला उही साइकिलीया से वजनौं घटाय ला ऐ राजा अब तू साइकीलिया कीन ला।

मन की जद्दोजहद

     आज इक्कीस दिन बाद कान्हा और दुर्गा जी को सज़ा रही थी।”स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन रहता है”।पूर्णतया सत्य है अस्वस्थता के कारण ना तो कोई काम कर पा रही थी और ना ही अपने कान्हा को तैयार कर पा रही थी।होली सिर पर थी और मैं बिस्तर पर।लेकिन कान्हा के लिए तो ख़रीदारी करने का जुनून सवार था मुझपर ।पतिदेव से कहा,”चलिए ना लड्डू गोपाल के लिए कुछ ले आते हैं”।पहली बार ब्रजेश ने दुखीऔर झल्लाहट भरे स्वर में कहा,”कुछ नहीं आएगा तुम्हारे लड्डू-गोपाल के लिए।इतनी सेवा करती हो तब भी तुमको ठीक नहीं कर रहे”।पहली बार मेरी किसी माँग को नकारे थे तो मैं समझ ही नहीं पाई कि क्या जवाब दूँ।ख़ैर काफी मनुहार के बाद सामान ले आए।       जन्मदिन,होली सब बिमारी में बीत गया।बस किसी तरह कभी कान्हा को तैयार कर देती थी तो कभी ऐसे ही भोग लगा देती थी।आज पूरे इक्कीस दिन बाद मन से कान्हा को तैयार कर रही थी और दुर्गा जी का श्रृंगार कर रही थी कि मोबाइल बज उठा।देखा तो बचपन की दोस्त का फ़ोन था।बात लम्बी होती इसलिए पूजा बाद बात करने का निश्चय किया।पूजा उपरांत फ़ोन किया तो हाल-चाल पूछने के उपरांत उसने मुझस...