स्तब्ध
बसंत ऋतु की ठंडी बयार,कोयल की कूक और पेड़-पौधों को मद-मस्त झूमते देखना किसे नापसंद होगा।इन्हीं सबका आनंद लेने मिली अपने बगीचे में आई थी कि अचानक उसे सिंह आंटी दिख गईं थीं।मिली की ख़ुशी ठिकाना नहीं था। हो भी क्यों ना इस मुए कोरोना में कोई दो साल बाद स्वस्थ आपके समक्ष अपनी उपस्थिति दर्ज कराए तो मन आनंद से भर उठता है।मिली बिना समय गँवाए आंटी से मिलने जाने के लिए मेनगेट खोलने ही जा रही थी कि उसके पति गौरव ने आवाज़ दी, “मिली जल्दी आओ माँ का फ़ोन आया है”। मिली भी यह सोचकर कि आंटी से मिलने पर तो बातें लम्बी हो जाएँगी बाद में आराम से बात करेगी वापिस लौट गई। गौरव के हाथ से मोबाइल लेते हुए बोली “मालूम है सिंह आंटी आ गईं”। “कब, कैसी हैं, ठीक तो हैं ना” एक साँस में गौरव मिली से पूछ बैठा। “अब मुझे क्या मालूम” मिली ने जवाब दिया और अपनी माँ से बात करने लगी।
मिली जब ब्याह कर आई थी तब हर दोपहर कोई ना कोई महिला मिली से मिलने ज़रूर आती थी।आज के समय जैसा तब नहीं था कि प्रीतिभोज में बहू से मिल लिए बस।उन दिनों तो प्रीतिभोज के बाद महीनों हर दोपहर महिलाएँ नई - नवेली बहू से मिलने आती थीं।तभी एक दोपहर सिंह आंटी घर आईं थीं मिली से मिलने।सिंह आंटी का व्यक्तित्व ऐसा था कि कोई भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था।देखने में सुन्दर और जब बोलते- बोलते खिलखिला कर हँसती थीं तो सब एकटक उनको निहारते थे।मिली भी उनसे पहली ही मुलाक़ात में प्रभावित हो गई थी।
मिली की सास और सिंह आंटी में अच्छी दोस्ती थी और अब तो मिली की भी अच्छी दोस्त बन गईं थीं सिंह आंटी। उनकी दो बेटियाँ ख़ुशी और मिताली थीं जिनका विवाह हो चुका था और अंकल बैंक मैनेजर के पद से सेवानिवृत्त हुए थे।आंटी को अपनी बेटियों से अथाह प्रेम था।किसी भी विषय पर बात हो और वो अपनी बेटियों का ज़िक्र ना करें ऐसा तो हो ही नहीं सकता था।साथ में यह भी कहती थीं “माँ-बाप का कष्ट बेटियाँ ही समझ सकती हैं बेटे तो विवाह के बाद बदल जाते हैं।आजकल की बहुएँ तो विवाह होते ही परिवार से अलग हो जाती हैं, उनसे तो सेवा की उम्मीद करना ही व्यर्थ है।” मिली को बस उनकी यही बात नापसंद थी। इतना बोलने के बाद मिली से रुबरू होते हुए बोलती थीं “सब तुम्हारे जैसी नहीं होतीं।आज के जमाने में तुम्हारे जैसी बहू मिलना मुश्किल है।” ऐसा नहीं है, जिनको सेवा करनी होती है वो हर हाल में करते हैं।कुछ बेटे तो ऐसे हैं कि अपने माता - पिता के लिए पोस्टिंग ही उसी शहर में लिए जिस शहर में उनके माता - पिता हैं और कुछ ने कैरियर के साथ समझौता किया है। मिली ऐसा बोलना चाहती थी लेकिन हर बार चुप लगा जाती थी।हाँ, अपने मन की बात वो गौरव से बोल देती थी। तब गौरव यही कहता था, “आंटी अपनी बेटियों के प्यार में ऐसा बोलती हैं।दोनों बेटियाँ भी उन पर जान छिड़कती हैं।बचपन में दोनों बहनें बिना अंकल के खाना खाए खाने को हाथ भी नहीं लगाती थीं और हम दोनों भाई तो अपने में ही मस्त रहते थे।पापा ने खाना खाया या नहीं कभी ध्यान ही नहीं देते थे।” गौरव का यह जवाब सुनकर मिली निरुत्तर हो जाती थी।
समय प्रगतिशील है, मिली अब एक बच्चे की माँ बन चुकी थी और उसकी सास का भी आकस्मिक निधन हो चुका था। इस दौरान बच्चे के लालन-पालन या गृहस्थी में किसी भी तरह की मदद के लिए आंटी हमेशा खड़ी रहती थीं।आंटी - अंकल की भी उम्र हो गई थी और अब वो अस्वस्थ रहने लगे थे।कभी आंटी अस्पताल में भर्ती होतीं तो कभी अंकल।अपनी बेटियों को सूचित भी नहीं करते थे कि वो परेशान हो जाएँगी।लेकिन बेटियों का दिल तो माँ- बाप से जुड़ा रहता है उनको जैसे ही ज्ञात होता कि आंटी-अंकल अस्वस्थ हैं तुरंत हाज़िर हो जाती थीं।दोनों बेटियाँ जब भी उनको अपने साथ ले जाने की बात करतीं वो दोनों तुरंत नकार देते थे। उनकी इस बात से ख़ुशी और मिताली बहुत दुखी होते थे और मिली से शिकायत भी करते थे कि, “देखिए ना भाभी, मम्मी-पापा अकेले रहते हैं टेंशन होती है लेकिन ये लोग तो हम लोगों के साथ चलने को तैयार ही नहीं होते।” ठंडी श्वास भरते मिली जवाब देती “ हाँ मैं भी तो कहती हूँ आंटी से लेकिन वो कहती हैं कि हमारे समाज में बेटियों के घर जाकर रहना ठीक नहीं।”
ठंड की एक रात आंटी ने गौरव को घबराहट भरी आवाज़ में अपने घर आने का आदेश दिया।मिली किसी अनहोनी की आशंका से काँप गई थी। उसकी आशंका उस समय सच साबित हो गई जब गौरव ने आकर बताया कि अंकल का देहांत हो गया।मिली आधी रात आंटी को हिम्मत देने पहुँच गई थी।
आंटी अब अकेली हो गईं थीं। सबको उनकी चिन्ता थी कि वो अकेली कैसी रहेंगी? ख़ुशी-मिताली दोनों उनको साथ ले जाना चाह रहे थे लेकिन आंटी के संग ना जाने की हठधर्मिता के कारण हार मान गए थे।वो दोनों भी कब तक रुकतीं ? अपनी माँ की सेवा का समुचित प्रबंध करके वो वापिस चलीं गईं थीं।आजकल सबकी ज़िन्दगी व्यस्तता से भरी है।ख़ुशी और मिताली भी अपनी ज़िंदगी में बहुत व्यस्त थे तो भी नियम से आंटी को प्रतिदिन दो बार फ़ोन करते थे। आंटी के फ़ोन ना उठाने पर किसी अनहोनी की आशंका से मिली को फ़ोन करती थीं ।
इधर बीच आंटी ज़्यादा अस्वस्थ रहने लगीं थी।मिताली उनको अपने साथ ले जाने के लिए आ गई थी। मिली-गौरव के बहुत समझाने के बाद वो बेटियों के पास जाने को तैयार हो गईं थीं।अपना घर छोड़ते वक्त उनकी आँखें नम थीं।
मिताली और ख़ुशी ने सम्भवत: मोबाइल नम्बर बदल दिया था।इस कारण आंटी का हाल चाल मालूम नहीं पा रहा था मिली को और अब तो दो साल से कोरोना ने दिमाग़ अलग ख़राब कर रखा था। गौरव और मिली अक्सर आपस में आंटी के लिए चिन्तित हो जाते थे कि मालूम नहीं आंटी कैसी हैं,इस दुनिया में हैं भी या नहीं?
आज दो साल बाद आंटी को देखकर मिली बौरा गई थी। “गौरव तुम आज नाश्ते में कॉर्नफ़्लेक्स खा लेना मैं जा रही आंटी के पास।” गौरव को आदेश देते मिली घर ने निकल गई ।
और आंटी कैसी हैं ? आंटी का चरण स्पर्श करते हुए मिली ने पूछा। “अच्छी - भली हूँ” मुस्कुराते हुए आंटी ने जवाब दिया।उनकी आवाज़ में निराशा झलक रही थी।शायद बेटियों से बिछुड़ने का दुख था। शायद क्यूँ पक्का यही कारण है,मिली ने मन ही मन कहा।“मिताली - ख़ुशी कैसे हैं ? आप अकेले आईं या मिताली साथ आई थी ? वैसे आप कब आईं, मालूम ही नहीं पड़ा।” मिली एक साँस में पूछ गई। “थोड़ा दम ले लो मिली,अभी भी बच्चों जैसे अनगिनत प्रश्न हैं तुम्हारे पास” आंटी हँसते हुए बोलीं।“क्या करूँ आंटी आपसे ढ़ाई साल बाद मिल रही हूँ और आप तो बेटियों के पास जाकर बहू को भूल ही गईं।ये भी नहीं सोचीं कि आपकी मिली आपके बिना कैसी होगी ? माना बहुएँ ख़राब होती हैं लेकिन इतनी भी नहीं कि आप अपनी खबर ही ना दें।” मिली ने हँसते हुए कहा।मिली के इतना बोलते ही आंटी की आँखों से आँसुओं की धार बह निकली। बोलीं, “ऐसा नहीं है बेटा तुम तो मेरी जान हो।” आंटी को रोता देखकर मिली विचलित हो गई और चिंतित स्वर में बोली, “ बहुत याद आ रही क्या मिताली- ख़ुशी की ? जब आप उनके बिना नहीं रह सकतीं तो फिर वापिस क्यों आईं?” ”मत लो बार-बार उनका नाम" तेज आवाज़ में आंटी बोंली। मिली उनके इस रूप को देखकर डर गई थी।
जो मिली अभी तक चहक रही थी शांत हो गई और आंटी के किचन में जाकर आंटी की पसंदीदा अदरक वाली चाय बनाने लगी।मिली जब चाय लेकर बाहर आईं तब तक गौरव भी आ चुका था।मिली ने उसे आँखों के इशारे से चुप ही रहने को कहा। मिली ने आंटी की ओर चाय का कप बढ़ाया तो आंटी ने चुपचाप ले लिया और बोलीं, “क्या कहूँ मिली, मेरी बेटियों को लगता था कि मैं बीमार रहती हूँ तो कुछ समय ही जीवित रहूँगी लेकिन मृत्यु जब लिखी होगी तभी होगी । मुझसे संबंधित कोई भी काम उन लोगों के लिए भारी हो गया था।सीधे शब्दों में कहूँ तो मैं उनके लिए भार हो गई थी।मुझे वृद्धाश्रम भेजने के लिए दोनों बहनें बात कर रहीं थीं जिसे मैंने सुन लिया था। आंटी के इतना बोलते ही मिली और गौरव स्तब्ध रह गए। मिली के हाथों से तो चाय का कप छूट गया। तीनों के बीच सन्नाटा छा गया।“ मैंने उन लोगों से स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि मुझे मेरे घर पहुँचा दो और अब मैं ख़ुद अपना इंतज़ाम कर लूँगी।और देखो मैं अपने घर आ गई”। आंटी ने थोड़ा मुस्कुराते हुए कहा।अपने दिल की बात बोलकर वो हल्का महसूस कर रहीं थीं।
Lekhan prabhavshali hai aur aapki samwedansheelta ne gajab ka samajik chitran kiya hai. Iske liye dhanywad aur badhai ke patr hai. Unki purani yaadon aur mitro ka sneh ka sansmaran unhe vriddhashram mein jaane se rokta hai, aisa mera man na hai. Isliye is karan ko likhne se shayad pathak ko dimag par jor nahi dena padega. Paryawaran bhi kisi ko sambal de sakta hai, iska ye achchha udaharan hai.
ReplyDeleteगजब का चित्रण किया है| पढ़कर ऐसा लगने लग रहा है कि जैसे यह हमारे इर्द-गिर्द घटित हो रही घटना है
ReplyDeleteसच्चाई को शब्द शिल्प में अच्छा गढ़ी हो तुम । शुभ आशीष
ReplyDelete🙏सदैव आपके आशीष की आकाँक्षी
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