दहशत
अभी तो वापिस लौटी थी ज़िंदगी
कि फिर दहशत के दिन आ गए ।
नहीं जीना दहशत के साए में
नहीं खोना किसी अपने या पराए को
नहीं सुनना एम्बुलेंस की साँय - साँय
नहीं जीना दहशत के साए में
अभी तो वापिस लौटी थी ज़िंदगी ।
कितने अनाथ हुए
कितनों की गोद सुनी हुई
रोग ग्रस्त की मदद ना कर पाने का बोझ उतरा ना था
कि फिर दहशत के दिन आ गए
नहीं जीना दहशत के साए में ।
फ़ोन की घंटी से अनहोनी की आशंका
किसी का व्हाट्सअप पर सक्रिय ना होना
किसी का फ़ेसबुक से अदृश्य होना
सब दहशत में लाएगा
नहीं जीना दहशत के साए में ।
सुख के बाद दुख
दुख के बाद सुख का भान है
किन्तु हर - पल दहशत से अवगत नहीं होना
अभी तो लौटी थी ज़िंदगी
कि फिर दहशत के दिन आ गए
नहीं जीना दहशत के साए में ।
Waah bahut accha likha hai
ReplyDeleteवाक़ई अब नहीं जीना इस दहशत के साए में 😭😭
ReplyDeleteबहुत अच्छी अभिव्यक्ति दहशत की । उन दिनों को याद करके दिल कांप जाता है।
ReplyDeleteNice one .... really un bure dino ki yaad bhi kisi dahshat se kam nhi
ReplyDelete