Posts

Showing posts from December, 2021

दहशत

 अभी तो वापिस लौटी थी ज़िंदगी  कि फिर दहशत के दिन आ गए । नहीं जीना दहशत के साए में  नहीं खोना किसी अपने या पराए को नहीं सुनना एम्बुलेंस की साँय - साँय नहीं जीना दहशत के साए में  अभी तो वापिस लौटी थी ज़िंदगी । कितने अनाथ हुए कितनों की गोद सुनी हुई रोग ग्रस्त की मदद ना कर पाने का बोझ उतरा ना था कि फिर दहशत के दिन आ गए नहीं जीना दहशत के साए में । फ़ोन की घंटी से अनहोनी की आशंका किसी का व्हाट्सअप पर सक्रिय ना होना किसी का फ़ेसबुक से अदृश्य होना सब दहशत में लाएगा  नहीं जीना दहशत के साए में । सुख के बाद दुख दुख के बाद सुख का भान है किन्तु हर - पल दहशत से अवगत नहीं होना अभी तो लौटी थी ज़िंदगी कि फिर दहशत के दिन आ गए नहीं जीना दहशत के साए में ।

आरती

    सुबह पूजा ख़त्म करने के बाद मैं  हनुमान जी की बड़ी सी फ़ोटो के आगे आरती गा रही थी, “आरती की जै हनुमान लला कि………….” कि अचानक कुछ ऐसा याद आया और आरती के दौरान ही हँसी आ गई।भगवान भी सोच रहे होंगे कि कैसी पुजारिन है कि पूजा भी बिना हँसे नहीं कर पा रही।क्या करूँ जानकी,हमजोली (मिस्टर आनंद सिंह बिष्ट ) के साथ बिताए पल ऐसे ही हैं।शारीरिक रूप से हम दूर हैं लेकिन हमारी यादें ऐसी हैं कि अकेले में भी हम तीनों ठहाके लगा लेंगे।मेरे एक मित्र के अनुसार “जो बीत गया उसको वहीं छोड़ देना चाहिए।” मैं इससे सहमत नहीं हूँ , जिन बीते पलों को याद करने से चेहरे पर मुस्कान आए या हँसी आए उनको हमेशा याद करना चाहिए।        अब पूजा के दौरान हँसी आई है तो घटना भी पूजा से ही संबंधित है। हुआ यूँ था कि मेरे घर से एक घर छोड़कर एक आंटी रहती थीं।उनके दो बेटे हैं ,बड़ा बेटा मेरी उम्र का है। उन दिनों वो प्रतियोगी परीक्षाएँ दे रहा था लेकिन सफलता हाथ नहीं लग रही थी।स्वाभाविक है आंटी-अंकल भी उसके चयन ना होने से परेशान हो रहे थे।आंटी ज़्यादा ही परेशान थीं क्योंकि बिना जीविका वो विवाह करने को ...

स्मरणीय पल

लगता है , आज तुमने मेरी सुध ली है तभी तो मैं आकुल हूँ । हम - दोनों में कुछ तो विशेष है तभी तो मेरी सुध लेने पर मैं  और तुम्हारी सुध लेने पर तुम  दोनों आकुल होते हैं । तुमसे क्या  उलाहना दूँ तुम तो नादान थे बिछोह के भान से अंजान थे । मुझे तो ज्ञात था  बिछोह का भान था फिर भी दिल दे बैठी । मिलन - बिछोह है  प्रकृति का नियम मेरा स्थान कोई और  और तुम्हारा स्थान कोई और लेगा फिर भी तुम सबका टंटा  प्रेमालाप सब स्मरण रहेगा लगता है, आज तुमने मेरी सुध ली है तभी तो मैं आकुल हूँ ।   

प्रेम के बदलते रंग

      प्रेम, कब -कहाँ और किससे हो जाएगा कहा नहीं जा सकता । अब देखिए ना मुझे इस उम्र में हो गया । अब क्या करूँ, हो गया तो छिपाना क्यों ? अब तक तो लगता था कि प्रेम करने की उम्र 16 से 25 -26 साल तक की होती है ।सच्चाई तो यह है कि प्रेम करने की कोई उम्र नहीं होती और प्रेम किया नहीं जाता हो जाता है ।      बहुत लोग सोच रहे होंगे शादी के इतने साल बाद किसी अन्य से प्रेम ? कहीं दिमाग़ तो नहीं ख़राब हो गया मेरा 😀।लेकिन प्रेम पर किसी का ज़ोर नहीं । मुझे तो लगता है कि इस समय का प्रेम ज़्यादा परिपक्व, सच्चा और वासना रहित होता है । समझ नहीं आता कि प्रेम करना ग़लत है या नफ़रत ? अगर प्रेम करना ग़लत नहीं तो छिपाना क्यों ?      मैंने आज तक प्रेम को छिपाना ही सीखा है फिर चाहे वो कोई हो। मैं ,मम्मी और भइया ना तो खुलकर प्यार दिखा पाते हैं और ना ही दुख। लेकिन अब लगता है कि अगर आप प्रेम करते हैं तो उसे ज़ाहिर कर ही देना चाहिए । अबोध बच्चे को जब आप अपने सीने से लगाते हैं तो वह आपकी दिल की धड़कन और स्पर्श से जान जाता है कि आप उससे कितना प्रेम करते हैं ।लेकिन जब हम यु...