अनोखा रिश्ता

     2001 से मेरा डॉक्टरों से मिलना जुलना जो शुरू हुआ वो आजतक निरंतर बना हुआ है।यह लेख मैं डॉक्टर्स डे पर लिखना चाहती थी लेकिन किसी कारणवश ना लिख पाई। उस समय मैं अपने जीवन में आए समस्त डॉक्टरों के बारे में लिखती अभी तो केवल जिन डॉक्टर के संपर्क में सबसे ज़्यादा रही उन्हीं के बारे में लिखूँगी।
      मैं अब तक जिनके संपर्क में  सबसे ज्यादा रही उनका नाम है डॉ अमित मोहन। एक पेशेंट अपने डॉ के संपर्क में कब आया यह उसे याद रहता है लेकिन डॉ के संपर्क में पेशेंट आया यह अगर डॉ को याद रहता है तो पक्का पेशेंट खास (विचित्र)है ।
    कल जब डॉ अमित से मिलने गई (पहली बार दिखाने नहीं) तो मुझे देखते ही बोले, ”मुझे मालूम था कि आपको कुछ नहीं होगा”। असल में कोरोना वैक्सीन की दूसरी डोज़ के बाद मेरी तबियत ज्यादा बिगड़ रही थी, साँस लेने में इतनी दिक़्क़त थी कि लगता था मृत्यु हो जाती तो ठीक रहता। उस समय जब मैंने इन्हें अपनी तकलीफ़ बताई तभी इन्होंने कहा कि “आपको कुछ होने से पहले मुझे मालूम हो जाएगा। हाँ दिक़्क़त ज़्यादा लगे तो एडमिट हो जाइएगा वैसे आपको होगा कुछ नहीं”। मुझे कुछ होने से पहले उन्हें मालूम हो जाएगा ऐसा उन्होंने अनगिनत बार कहा होगा लेकिन मैंने कभी गंभीरता से नहीं लिया। आज जब लिखने बैठी हूँ तो मुझे याद आ रहा कि वाक़ई जब मेरी जान पर बन आई थी तब इन्होंने बहुत दुखी होकर कहा था, ”ब्रजेश जी बिना देर किए इन्हें तुरंत पीजीआई ले जाइए”।
      मुझे आज भी याद है कि मैं इनको पहली बार दिखाने 2008 में गई थी तब सबसे पहले बाहर इनके पिताजी से मुलाक़ात हुई थी। फिर तो जब भी जाती तो अंकल से मेरी खूब बात होती थी। बात-बात में ही अंकल ने बताया था कि डॉ अमित केवल उनकी तबियत के कारण ही दिल्ली एम्स से वापिस आ गए। उसी समय मैं नतमस्तक हो गई थी। डॉ अमित मोहन और डॉ स्कंद का आमना-सामना एक ही बार हुआ है ऐसा मुझे डॉ स्कन्द ने बताया था तभी डॉ स्कन्द ने कहा था ऐसा डॉ मिलना मुश्किल है जो एम्स से डीएम डिग्री अपने पिताजी के लिए छोड़कर आ जाए। उसके बाद तो अनगिनत घटनाएँ है जिससे इनके प्रति श्रद्धा बढ़ती गई।मुझे या मुझसे जुड़े हर इंसान के लिए ये हमेशा खड़े रहे हैं।
    कल जब डॉ अमित से मिलने गई तब इन्होंने बताया कि “मुझे याद है कि आप 2008 में दिखाने आईं थीं और सच बताऊँ तो मैं आपका failure था, आप कितनी critical patient रही हैं मेरे लिए आप सोच भी नहीं सकती जो दवाएँ सब पर काम करती हैं वो आप पर करती ही नहीं। किताबों से हटकर आपका इलाज करता हूँ मैं”। कल डॉ अमित से बहुत बातें हुईं वो थोड़े फुर्सत में थे और मैं स्वस्थ।
     विदा लेते वक्त उन्होंने फिर कहा, ”आपको कुछ होने से पहले मुझे मालूम हो जाएगा इसलिए आप निश्चिंत रहिए और स्वस्थ रहिए व हँसते रहिए”। अब जिसका डॉ ऐसा हो तो उसको तो कुछ हो ही नहीं सकता। आख़िर मैं उनकी शेर (lion)जो हूँ।(बीमारी को हराकर जब ठीक होती हूँ तो वो मुझे “शेर” ही कहते हैं) 
     
    

Comments

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  2. मन की भावनाओं की बहुत ईमानदार और स्पष्ट अभिव्यक्ति, बहुत अच्छा लेख, पढ़कर अच्छा लगा

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  3. जियो शेर! बहुत सुंदर।

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  4. Bahut hi natural expression, jo man laga kar ekant mein ek flow mein likha gaya hoga. Keep it up.👌👌👌👌👌

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  5. डॉक्टर के शेर और मेरी शेरनी बहुत अच्छा लिखा मस्त रहो

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  6. डॉक्टर के शेर और मेरी शेरनी बहुत अच्छा लिखा मस्त रहो

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