बात ही बात
यूपी बोर्ड के हाई स्कूल में हिंदी का पहला अध्याय प्रताप नारायण मिश्र का निबंध "बात " है । गाहे-बगाहे यह निबंध याद आ ही जाता है । क्योंकि बिना 'बात' कुछ हो ही नहीं सकता और लोग 'बातें' भी कितनी करते हैं । पहले सीमित संसाधन थे अब तो संसाधनों की भी कमी नहीं । फेसबुक , इंस्टाग्राम , ट्विटर, व्हाट्सएप, यूट्यूब, ब्लॉग सब पर 'बातें' ही तो होती हैं । अभी जो मैं लिख रही तो मैं भी अपने मन में आई 'बात' ही लिख रही हूॅं । इंसान जब दो साल का होता है तभी बोलना सीख जाता है । लेकिन कब , कहाॅं , क्या बोलना चाहिए यह जीवन भर नहीं सीख पाता । किस 'बात' का दूसरे इंसान पर क्या प्रभाव पड़ेगा यह भी नहीं सोचते । इनमें से कुछ ऐसे भी हैं जिनको बाद में एहसास होता है कि उन्होंने गलत बोल दिया है वो क्षमा भी मांग लेते हैं और कुछ 'क्षमा' शब्द से ही अनभिज्ञ होते हैं, वो ये मानने को तैयार ही नहीं होते कि वो दिल दुखाने वाली 'बात' बोल भी सकते हैं । अब वो 'बात' जो हम लोग बच्चों को चिढ़ाने के लिए बिना सोचे-समझे ब...