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अंधविश्वास मर्ज का इलाज

     आज सुनीता बहुत खुश थी । हो भी क्यों ना , आखिर आज वो होने जा रहा था जो वो महीनों से चाह रही थी । ऐसे तो काम में वो फुर्तीली थी , घर का काम सबके साथ मिलकर निपटा कर ही ऑफिस जाती थी । लेकिन आज उसके काम करने में अलग ही फुर्ती थी । रसोई का काम करते-करते वह कुछ गुनगुना भी रही थी । सुनीता की सास सुनीता को खुश देख मंद मंद मुस्कुरा रही थीं और उसकी समझदारी पर गर्व भी कर रहीं थीं ।       एक वर्ष पूर्व ही सुनीता का ब्याह सुनील से हुआ था । नये परिवार में वह अच्छे से रच - बस गयी थी । सास - ससुर , छोटी ननद सब बहुत अच्छे थे । किसी बात की कमी नहीं थी और सुनील, वो तो बहुत ही समझदार था, सुनीता का साथ देने को सदा तत्पर रहता था ।       सब कुछ ठीक था किन्तु सुनील के माता-पिता अंधविश्वासी थे । जब भी कोई अस्वस्थ होता तो डॉक्टर के पास ना जाकर ओझा और पंडित के पास जाते थे और पूजा-पाठ में व्यर्थ का पैसा खर्च करते थे यह सब सुनीता को बहुत खटकता था । एक दो बार उसने अपनी सास को समझाना‌ चाहा तो वो उससे नाराज हो गईं । ऐसे तो सुनील हर बात में उसका साथ देता था किन्तु इस माम...