मदर्स डे
मई माह का दूसरा रविवार “मदर्स डे”। माँ को समर्पित एक दिन।एक दिन ? आजकल प्रेम,माँ-बाप,बेटा-बेटी सबके लिए एक दिन बना दिया गया है। क्यों और किसलिए इन सब पचड़ों में मैं नहीं पड़ना चाहती। आज माँ पर ही लिखना चाहती हूँ।मैंने लोगों को माँ के जाने के बाद माँ पर कविता, फ़ोटो या दान करते देखा है चाहे माँ के जीवित रहते उनको उपेक्षित ही क्यों ना किए हों। माँ या किसी भी रिश्ते के लिए एक दिन नहीं हो सकता फिर भी जब मदर्स डे पर बच्चे (कुची,आद्या और प्रणव)केक कटवाते थे तब मुझे और जानकी को बहुत अच्छा लगता था।लेकिन आजतक मैंने अपनी मम्मी को कभी केक नहीं भेजा। हाँ,सुबह फ़ोन कर देती हूँ ।सामान्यतः वही फ़ोन करती हैं मैं नहीं और हम दोनों में औपचारिक बातचीत ही होती है।हम माँ-बेटी में दोस्ती वाला रिश्ता पनपा ही नहीं।मैं तो मदर्स डे पर भी फ़ोन नहीं करती थी, कुछ सालों पहले सुबह-सुबह मम्मी का फ़ोन आया कि “डॉली तुमने हमें विश नहीं किया”? मैंने पूछा “आज है क्या” बोलीं टुक्कू(मेरे छोटे भतीजे) बोल रहा था, “आज तुम्हारी बेटी ने तुम्हें विश...