हवाई यात्रा
मैं और मेरे द्वारा किए गए महान कार्य।सामान्यत: मुझसे महान कर्म हो ही जाते हैं, मैं महान जो हूँ।कभी दीवान के अंदर गिर कर आधा बंद हो जाती हूँ, कभी दुकान में शीशे वाले दरवाज़े से इतना तेज टकरा जाती हूँ कि दुकान के निचले तल के कर्मचारी हड़बड़ाते हुए ऊपर आकर पूछ लेते हैं कि “ क्या हुआ,ज़्यादा लगी तो नही ?”और कभी उल्टा हेलमेट लगाकर आद्या को डांस एकेडमी तक छोड़ आती हूँ। महान कार्य ज्यादातर विवाहोपरांत ही किया है क्योंकि विवाह से पूर्व बाहर बहुत ही कम निकलती थी।बाहरी दुनिया से मैं पूर्णतया अनभिज्ञ थी, यह कहना ग़लत ना होगा।किसी अनजान से मिलना-जुलना होता ही नहीं था और ना ही मैंने कभी कोई बाहरी काम किया था तो गड़बड़ी होने की संभावना ही नहीं। लगता है घर का छोटा बच्चा उम्र के किसी भी पड़ाव पर हो वो कभी बड़ा नहीं होता।बेवक़ूफ़ी भरी हरकतें उससे होती ही रहती हैं।मेरे साथ तो ऐसा ही होता है ।इस बार तो मैंने कुछ ज़्यादा ही महान कार्य कर दिया। हुआ यूँ कि, कुची को दिल्ली वि...